हुंडी (भाग २)
जब भैंसा सेठ ने देखा की उसकी मां तीर्थ यात्रा के तय समय से बहुत पहले वापस आई है तो उसे कुछ बुरी घटना घट जाने की आशंका हुई।भैंसा सेठ ने अपनी मां का पूजन कर घर में आगमन कराया। आज भैंसा सेठ ने पाया कि उसकी मां बहुत उदास है।उसने अपनी मां से अपनी उदासी का कारण बहुत बार पूछा लेकिन उसकी मां ने एक शब्द भी नहीं कहा।भैंसा सेठ को जवाब नही देकर शून्य में देखने लगी। भैंसा सेठ को अपनी मां की उदासी का कारण पता नही चल पाया,जिससे वह बहुत गुस्से से भर गया।अपनी मां से बहुत विनय प्रार्थना की लेकिन मां ने एक भी शब्द नही बोला। क्योंकि वह समझती थी कि स्वयं के अपमान की बात बताने से दुख ही होता है,इस लिए वह चुप रही। जब मां ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया तब भैंसा सेठ ने तीर्थयात्रा में साथ गए सेवादारों से पूछा।लेकिन सभी सेवादारों ने अपनी अनभिग्यता बताई।क्योंकि उन सब को भैंसा सेठ की मां ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया था। तब भैंसा सेठ ने एक एक युक्ति सोची।अपनी मां के साथ तीर्थ यात्रा में गए सभी
सेवादारों को इक्कठा किया और उन्हें संबोधित करते हुए बोला कि में मारवाड़ परगने के सत्यपुर का भैंसा सेठ आप सभी सेवादारों का आभारी हूं जिन्होंने मेरी मां के द्वारिका तीर्थ यात्रा के संकल्प को संपन्न करवाया, मै आप सबका पगड़ी और बख्सीस देकर सम्मान करना चाहता हूं।और उसने एक पुराने विश्वस्त सेवादार का नाम पुकारा।और अपने पास बुलाया। सभी सेवादारों के चेहरे ग्लानिवश पीले पड़ गए। बूढ़ा सेवादार भैंसा सेठ के पांवों में गिरकर फूट फूट कर रोने लगा। जब भैंसा सेठ ने उसे बाहों में पकड़ कर ऊपर उठाया और रोने का कारण पूछा।तो वह रोते रोते बोला कि अन्नदाता माताजी ने हम सब को चुप रहने की हिदायत दी थी इसी कारण हम सब आप से झूठ बोले।लेकिन जब आप बिना यात्रा पूरी किए ,हम सब का भरोसा कर, तीर्थयात्रा पूर्ण मान कर हमारा सम्मान करने लगे तो हमे लगा कि हम को झूठ के बुनियाद पर सम्मान पाकर स्वयं को पाप का भागीदार नही बनना चाहिए। और उसने पाटन की हाट पर हुई घटना अक्षरस वर्णन कर दी।तब भैंसा सेठ ने उनका सम्मान यह कर किया कि ऐसी स्वामिभक्त और बुद्धिमान नोकर किस्मत से ही मिलते है। भैंसा सेठ ने पढ़ रखा था कि
पढ़िया लिखा पचास,मन चाह्या मिल जावसी।
खाती दास खवास, चाह्या मिले न चकरिया।।
इस प्रकार भैंसा सेठ को अपनी मां की उदासी एवम पाटन के सेठों की करतूत का पता चला। भैंसा सेठ के मन में पाटन...
सेवादारों को इक्कठा किया और उन्हें संबोधित करते हुए बोला कि में मारवाड़ परगने के सत्यपुर का भैंसा सेठ आप सभी सेवादारों का आभारी हूं जिन्होंने मेरी मां के द्वारिका तीर्थ यात्रा के संकल्प को संपन्न करवाया, मै आप सबका पगड़ी और बख्सीस देकर सम्मान करना चाहता हूं।और उसने एक पुराने विश्वस्त सेवादार का नाम पुकारा।और अपने पास बुलाया। सभी सेवादारों के चेहरे ग्लानिवश पीले पड़ गए। बूढ़ा सेवादार भैंसा सेठ के पांवों में गिरकर फूट फूट कर रोने लगा। जब भैंसा सेठ ने उसे बाहों में पकड़ कर ऊपर उठाया और रोने का कारण पूछा।तो वह रोते रोते बोला कि अन्नदाता माताजी ने हम सब को चुप रहने की हिदायत दी थी इसी कारण हम सब आप से झूठ बोले।लेकिन जब आप बिना यात्रा पूरी किए ,हम सब का भरोसा कर, तीर्थयात्रा पूर्ण मान कर हमारा सम्मान करने लगे तो हमे लगा कि हम को झूठ के बुनियाद पर सम्मान पाकर स्वयं को पाप का भागीदार नही बनना चाहिए। और उसने पाटन की हाट पर हुई घटना अक्षरस वर्णन कर दी।तब भैंसा सेठ ने उनका सम्मान यह कर किया कि ऐसी स्वामिभक्त और बुद्धिमान नोकर किस्मत से ही मिलते है। भैंसा सेठ ने पढ़ रखा था कि
पढ़िया लिखा पचास,मन चाह्या मिल जावसी।
खाती दास खवास, चाह्या मिले न चकरिया।।
इस प्रकार भैंसा सेठ को अपनी मां की उदासी एवम पाटन के सेठों की करतूत का पता चला। भैंसा सेठ के मन में पाटन...