...

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* एक मुलाकात
टहलते समय मेरा एक मित्र मिल गया...!

मिलते ही थोड़ी देर इधर उधर की बात करने के बाद उसने बोला कि... यार, ये वैगन R चलाते चलाते बोर हो गया हूँ...
कोई अच्छी गाड़ी सुझाओ न .

इस पर मैंने अपना सुझाव देते हुए कहा कि.... अगर गाड़ी बदलनी है तो फर्स्ट क्लास ऑल्टो ले लो..!

मैक्सिमम 4-5 लाख में आ जायेगी.

इस पर मेरे मित्र ने मुझे घूरते हुए देखा और कहा : साला, हम तुमसे पूछके गलत किये.

हम तो KIA का seltos या फॉर्च्यूनर टाइप गाड़ी सोच रहे हैं..
और तुम हमको छूटिये की तरह ऑल्टो सुझा रहे हो.

इस पर मैं भी शर्मिंदा हो गया और बात को संभालते हुए कहा कि... हाँ यार, फिर तो फॉर्च्यूनर ही लो.
300-400 की स्पीड से चलेगी तो हमलोग लखनऊ भी जल्दी पहुँच जाएंगे कभी गए तो.

पता नहीं क्यों...
लेकिन, मेरे इतना अच्छा विचार देते ही मित्र शाबासी देने की जगह मुझपर ही भड़क गया और मुझसे घूरते हुए कहा कि... अबे, दारू-उरु पीना शुरू कर दिए हो क्या ???

साले, भारत की सड़क पर कौन सी गाड़ी 300-400 की स्पीड में चलती है बे ??

90-100 पर ही चल जाए तो बहुत है.

इस पर मैंने विरोध जताते हुए कहा कि... लेकिन यार, फिर तो 4 लाख की ऑल्टो भी 70-80 की स्पीड तक चल ही जाती है.

तो, महज 10-20 km की स्पीड बढ़ाने के लिए उससे 10 गुणा ज्यादा 30-40 लाख देना कहाँ की बुद्धिमानी है ???

सब तो गाड़ीए है जो सड़क पर ही चलेगी...
महंगी गाड़ी हवा में थोड़े न उड़ने लगेगी.

इस पर मित्र ने झुंझालते हुए कहा कि....अबे लीचड़ आदमी.
कम्फर्ट नाम की भी कोई चीज होती है कि नहीं होती है बे ???

अब ऐसे कहोगे तो फिर तुम्हारे लिए होटल भी तो 500 रुपया का मिल जाएगा.
लेकिन, 25-30 हजार पर डे का होटल होता है कि नहीं होता है बे ??

अब इसमें भी तुम वही भोकाल दोगे कि... होटल में तो सोना ही है.
तो, इससे क्या फर्क पड़ता है कि 500 रुपये वाले रूम में सोएं या 5000 वाले में ???

इस पर मैंने कहा : वही तो.
हम सच में यही बोलने वाले थे कि दोनों में तो सोना ही है.
अब ऐसा थोड़े न है कि 5000 या 25000 वाले रूम में रात 18 घंटा का होगा और हम ज्यादा सो के अधिक पईसा वसूल कर पाएंगे..
जबकि, 500 टकिया रूम में तीने घंटा में भोर हो जाएगा ..???

इस पर मित्र लगभग चिल्लाते हुए कहा कि.... अरे बेवकूफ..
बड़े होटल्स में ज्यादा सोने के पैसे नहीं लगते हैं बल्कि कम्फर्ट और well feeling के पैसे लगते हैं...
इतनी सी बात तुझे समझ नहीं आती है ???

उसकी बात सुनकर मैंने अंतिम बार उससे पूछा कि....
लेकिन यार, अभी तो एक हफ्ता से तुम ही सोशल मीडिया पर पोस्ट पर पोस्ट पेले जा रहे थे कि...
पैसेंजर ट्रेन 130 रुपया में ही गोरखपुर से लखनऊ पहुंचा देती है..

तो, फिर वन्दे भारत में 800 रुपया काहे के लिए देना है .

और, अभी हमको कम्फर्ट का महत्व समझा रहे हो ???

इस पर मित्र सारी बात समझ गया और हंसते हुए कहा :
ओह तो ये बात थी ?
अबे, उ सोशल मीडिया है.

वहाँ यही सब लिखने से लाइक मिलता है इसीलिए हम यही सब लिखते हैं.

अब उसकी बात मुझे भी समझ आ गई और हमदोनों हंसते हुए गाड़ी देखने टोयोटा के शो रूम की ओर बढ़ गए..!

© JUGNU