...

8 views

कुनबा : 1.5 मनहूस भोर (कटाक्ष दर्पण!)
पंडतायन :-
अरी ओ लाड़ो, क्यूँ तू खून की पीवा हो रखी है। नशा पत्ता कम था जो अब निरोध लेकर भी घूमने लगी, हैं? इसी दिन के लिए पाल पोस के बड़ा किया था कि तू एक दिन हमारा ही नाम मिट्टी में मिला दे।

गुस्सैल लौंडिया :-
मका ऐसा है माँ, निरोध रखना कोई अपराध तो है नहीं जो तूने सुबह सुबह घर सर पे चढ़ा लिया। और फिर मर्द भी तो आज कल के रखना नहीं चाहते। सबको बिना रबड़ के मजे लेने हैं। अब अगर मैं अपनी सुरक्षा खुद लेकर चलती हूँ, तो इसमें गुनाह क्या है? और दूसरी बात ये कि, प्राइवेसी नाम की कोई चीज़ है या नहीं, जब देखो रह रह के पर्स में हाथ डाल देती हो। ऊपर से ये और सुनने को मिल रहा है कि नाम मिट्टी में मिला दिया, और ऐसे कौन से किले जीत रखें हैं खानदान ने जो नाम खराब हो गया।

एक तरफ तो पंडतायन और लाड़ो घर की मर्यादा के नाम पे डिबेट में व्यस्त थे और उधर दूसरी तरफ बीयर के नशे में धुत कात्सो और सर्वान्तेस निकल चुके थे डेट मारने को। दोनों की गर्लफ्रेंड भी सगी बहने, चंदा और चमेली, घर भी एक, मंजिल भी एक। दोनों झूमते हुए पहुंच लिए चितोड़ा के खेतों में। लाड़ो ने पंडतायन को मर्द की सोच के बारे में जो कुछ भी ज्ञान दिया, ये दोनों उसपे सोलह आने सच। अड्डे पे पहुंचे दोनों सिर्फ एक एक चटाई लेकर। निरोध तो जैसे अपराध हो रखना।

इन्ही सब कर्म कांडों के बीच शर्माजी हमारे एक ही ख्याल में :-
शराब को दुत्कारते कुछ खुली ज़बान से तो कुछ दबी ज़बान से। शराब रहती मगर इस मदहोश ज़माने में, बड़े ही बेखौफ शान से।
#Writco #story #original #oc #kunba #thehellishvisionshow

© Kunba_The Hellish Vision Show