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एक था बनी
"आज दिल जैसे उदासी और आँसू के समुन्दर में डूब गया है।आज "बनी एक नई यात्रा पर निकल गया इस जन्म को छोड़कर।"आप सोंच रहे होंगे ये बनी कौन था?बनी मेरी गली के आगे के मुहल्ले का एक प्यारा सा खूबसूरत ,समझदार कुत्ता था !मुझे कुत्ते बहुत प्यारे लगते है,खासकर ये स्ट्रीट डॉग ।मैं अक्सर जब भी उस मुहल्ले की तरफ जाती 5 कुत्ते मुझे अक्सर उस गली के किसी न किसी घर के सामने बैठे या खेलते मिलते,पर नाम किसी के नही थे।एक दिन मैंने देखा उन्ही में से एक काला और सुनहरे रंग का प्यारा सा कुत्ता किसी बाहरी कुत्ते को अपने मुहल्ले की हद से बाहर खदेड़ता हुआ जा रहा था। किसी ने आवाज़ दी बनी जाने दे उसे।बनी रुक गया और वापस आ गया।मैं सम्मोहित हो गयी उसके आज्ञापालन को देख कर।पता लगा वहाँ के एक पति पत्नी उसे 4 साल पहले जब वो 2 महीने का था तो पालने के लिये लाये थे मगर आपको तो पता ही है कि छोटे बच्चे इंसान के हो या जानवर के उन्हें नही पता होता कि उन्हें कहाँ मल मूत्र करना है, उन्हें तो सिखाना पड़ता है ना? वो बनी को ले तो आये मगर उसे सिखाना कुछ नही चाहते थे,और परिणाम ये हुआ कि वो 2 महीने का छोटा सा खूबसूरत सा पिल्ला यहाँ वहाँ उनके घर के कोने गंदे करने लगा। उनके घर की सफाई उन्हें ज्यादा अहम लगी सिखाने की कोशिश से ज़्यादा,और कुछ दिनों बाद उन्होंने बनी को उस नन्ही सी जान को बाहर निकाल दिया,मगर कहते हैं न कि कुत्ते सबसे वफादार जानवर होते है,वो बाहर निकाल तो दिया गया मगर वो उसी दरवाज़े पर बैठा रहता,धीरे धीरे बनी उसी मुहल्ले को अपना घर समझने लगा और बाकी कुत्तो के साथ दोस्ती करके बड़ा होने लगा,बाकी कुत्तो से रंगरूप में एकदम अलग।पूरे मुहल्ले का दादा बन गया था बनी,लोग उसे बिस्किट, ब्रेड खिलाते ,ढूध भी दे देते।जाने अनजाने बनी से मेरी दोस्ती भी गहराने लगी थी अब वो कभी कभी मेरे पीछे पीछे मेरे मुहल्ले में भी आ जाता था।उस परिवार से चिढ़ सी हो गयी थी कि जब पाल नही सकते थे तो लाये क्यो?एक दिन पता लगा कि बनी किसी और मुहल्ले में किसी कुत्ते को भगाता हुआ पहुंच गया जहाँ उसे कुछ कुत्तो ने बहुत नोचा, और गले के पास एक गहरा ज़ख्म हो गया है।सबको पता था कि मैं जानवरो की दवा रखती हूं क्योंकि अक्सर कोई जख्मी जानवर मिल ही जाता था मुझे।मैने जाकर बनी को देखा तो अवाक रह गयी उसकी एक तरफ की गर्दन खा गए थे कुत्ते वो उस दर्द में यहाँ वहाँ भागा फिर रहा था,गरदन को झटकता तो खून के छीटे बिखर जाते थे।सबने कहा बनी मर जायेगा,मगर मैं उसके पीछे पीछे स्प्रे लिये भागा करती ।उसे पनीर बहुत पसंद था,मैं इसी को उसे रोकने का जरिया बनाती थी।आवाज़ लगाती"बनी आओ लो"वो दूर से देखता पनीर की थैली और आ जाता ,मैं बिना वक़्त गवाएं उसके ,ज़ख्म पर स्प्रे डाल देती।कुछ दिन की मेहनत रंग लाई और उसके ज़ख्म भर गये।अब उसे ये लगने लगा था मैं उसकी शुभचिंतक हूँ,जब उसके माथे पर सहलाती वो सुकून से आंखे बंद कर लेता ,मैं कहाँ जान पाई कि एक दिन वो मेरे सामने ऐसे ही आंख मूंदकर हमेशा के लिये चला जायेगा और मै बेबस सी उसे दम तोड़ते देखती रह जाउंगी।वो ज़ख्म भर गए।एक दिन कुछ बच्चे मेरे पास आये और बोले दीदी बनी के सर पर कुत्तो ने फिर काट लिया है,मुझे लगा इस बार भी उसे ठीक कर ले जाउंगी,जाकर देखा तो मेरे होश उड़ गए,कीडों ने उसके सर के घाव को बुरी तरह खा लिया था,बनी बहुत दर्द में था,उसके घाव से बदबू आ रही थी कीड़े चल रहे थे मेरी आत्मा कराह उठी उसके दर्द से।जो बनी सबको प्यारा था जिस मुहल्ले की चौकीदारी वो करता रहा वही लोग आज उसे अपने दरवाजे से भगा रहे थे।मैंने किसी तरह उसे पकड़कर चैन से बांधा ताकि उसका इलाज हो सके।बनी रोता था कराहता था,दुनिया गणेश विसर्जन में व्यस्त थी और बनी मौत की तरफ बढ़ने में।इस बार खतरे को भांप चुकी थी मैं,फिर भी अपनी पूरी ताक़त झोकने पर आमादा थी।मैने डॉक्टर को बुलाकर उसे ग्लूकोज चढ़वाया,स्प्रे किया,दवा खिलाई मगर बनी की हालत दिनों दिन बिगड़ती जा रही थी,उसने खाना पीना छोड़ दिया मै रोज जाती उसके पास वो निरीह आंखों से देखता मुझे जैसे कह रहा हो इस बार भी बचा लो मुझे मैं जीना चाह रहा हूँ,बचा लो मुझे,निकाल लो मुझे इस दर्द से।अन्ततः मैंने उसे लखनऊ ले जाने का फैसला किया,और उसकी एक vedio बनाने उसके पास आई ताकि डाक्टर को भेज सकूँ।उसी वक़्त बनी की आंखे बंद हो रही थी,मैंने आवाज़ दी उसे"बनी"उसने एक नज़र देखा और निढाल हो गया।पानी के छीटे दिये उसके मुंह पर, मगर बनी एक नई यात्रा पर निकल चुका था।इस एक हफ्ते की देखभाल में जैसे बनी मेरी ज़िन्दगी का एक हिस्सा बन चुका था जो जीवनपर्यन्त मेरे साथ रहेगा।