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"सत्यम शिवम् सुंदरम"
आज का विषय अत्यंत रौचक एवं ज्ञानवर्धक है, तो कृपया अध्यन पूरा करें!🙏🤓

#सत्यम_शिवम् _सुंदरम!

जो सत्य है, वही कल्याण ( शिवम्=कल्याण)–का हेतु है तथा वही सुंदरता का द्योतक भी है।
ये तीनों पृथक–पृथक रह ही नहीं सकते, अब प्रश्न उठता है कि –"सत्य" क्या है? यथाश्रुत, यथादृष्ट, यथानुभूत वृतांतका यथावत आख्यान ही "सत्य" है।
लोक–व्यवहार में जैसा सुना, देखा, एवं अनुभव किया गया; ठीक वैसे ही ( बिना किसी मिलावट ) के कहना सत्य माना जा सकता है।
#शास्त्रों में आया है कि –"सत्यम ब्रुयात प्रियम ब्रूयात न ब्रुयात सत्यम प्रियम!"
अर्थात– सत्यम ब्रुयात सत्य बोलो, परंतु नियम लगाया, प्रियम ब्रूयात अर्थात प्रिय भावसे, हित बुद्धिसे ही सत्य बोलो, न ब्रुयात सत्यम प्रियम, अर्थात अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिए।
अब पुनः प्रश्न उठेगा, कि क्या सत्य भी प्रिय हो सकता है? अथवा सत्य प्रिय लगता है क्या? अब लोगों की तो धारणा है कि सत्य कड़वा होता है।
जिनके सत्य बोलने की आदत सी होती है, वे स्वयं अपने विषय में कहते हैं कि मैं कड़वा बोलता हूं, खरा बोलता हूं।
लगता भी ऐसा ही है कि सच बोलने वाला चेहरा तमतमाया, वाणी तीखी, भृकुटी तिरछी, वक्षस्थल सुदृढ़ता...