परिवार प्रेम........
पूरे चार महीने बाद वो शहर से कमाकर गाँव लौटा था। अम्मा उसे देखते ही चहकी...
"आ गया मेरा लाल! कितना दुबला हो गया है रे! खाली पैसे बचाने के चक्कर में ढंग से खाता-पीता भी नहीं क्या!"
"बारह घंटे की ड्यूटी है अम्मा, बैठकर थोड़े खाना है! ये लो, तुम्हारी मनपसंद मिठाई!"--कहकर उसने मिठाई का डिब्बा माँ को थमा दी!
"कितने की है? साढ़े तीन सौ की!"
"इस पैसे का फल नहीं खा सकता था! अब तो अंगूर का सीजन भी आ गया है!"--अम्मा ने उलाहना दिया।
पूरा दिन गाँव-घर से मिलने में बीत गया था! रात हुई, एकांत में उसने बैग खोलकर एक पैकेट निकाला और पत्नी की ओर बढ़ा दिया--
"क्या है ये?"...
"आ गया मेरा लाल! कितना दुबला हो गया है रे! खाली पैसे बचाने के चक्कर में ढंग से खाता-पीता भी नहीं क्या!"
"बारह घंटे की ड्यूटी है अम्मा, बैठकर थोड़े खाना है! ये लो, तुम्हारी मनपसंद मिठाई!"--कहकर उसने मिठाई का डिब्बा माँ को थमा दी!
"कितने की है? साढ़े तीन सौ की!"
"इस पैसे का फल नहीं खा सकता था! अब तो अंगूर का सीजन भी आ गया है!"--अम्मा ने उलाहना दिया।
पूरा दिन गाँव-घर से मिलने में बीत गया था! रात हुई, एकांत में उसने बैग खोलकर एक पैकेट निकाला और पत्नी की ओर बढ़ा दिया--
"क्या है ये?"...