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"यादों की सरगम"
आषाढ़ की एक दोपहर थी...पिछले वर्ष  में आये भीषण बाढ़ ने बहुत तबाही मचाई थी,औऱ तब  बाढ़ की विभीषिकाओं से बचने के लिए उस  नवगठित राज्य में  सरकार ने नदी के कगारों को कटने से बचाने के लिए इन्हें बड़े बड़े बोल्डरों से बांध दिया था...और नदी के कगारों पर वे दोनो इन्ही बोल्डरों में बैठे थे,गूलर के पेड़ की छांव में... पास में ही पड़े उन  दोनों के स्कूल बैग छुपी नज़रों से उनकी हर हरकतों का मज़ा ले रहे थे।
वे दोनों थे देव और सोहणी।

नदी की धारा अपने ही मगन में बह रही थी....और बह रहा था वो ठंडा झोंका हवा का,जिससे सोहणी की जुल्फें बेतरतीबी से इधर उधर हो रहे थे और सोहणी उन्हें समेटने की असफल चेष्टा बार बार कर रही थी ।

पता है सोहणी, मैं न हमेशा से ये सोचा करता था,की पता नही तुमसे कभी कह पाऊंगा भी या नही ,पर तुमने इसे कितना आसान बना दिया, एक बड़ा सा थैंक्स यार मेरी ज़िंदगी को इतना खूबसूरत बनाने के लिए !!

तुम फिर से शुरू हो गए।
ये कहते हुए वो अपने दोनों पैरों को लम्बा कर के पसार ली...और देव उसकी गोद मे अपने सर को रख कर अधलेटे अवस्था मे उसके चेहरे और चेहरे पर बिखरी हुई उसके लटों को अपलक दृष्टि से निहारने लगा  ..और सोहणी की आँखें, देव की आँखों मे झाँकने लगी !!
क्या देख रही हो ??

तुम्हारी आंखे...उसने बिना पलकें झपकाए जवाब दिया
क्या दिखता है मेरी आँखों मे ?

मैं...सिर्फ मैं ही नज़र आ रही हूं देखो ध्यान से !

हां.. तुम्हारी आँखों में भी सिर्फ मैं ही दिख रहा हूं..... मगर बुद्धू लड़की,आंखों का क्या है,ये तो आईना है,जिसके सामने रहोगी ,ये उसी की तस्वीर दिखायेगा ।
फिर तो भगवान से यही मांगूंगी...तुम हमेशा मेरी नज़रो के सामने रहो !!

सोहणी ....अब तो सचमुच तुम्हे प्यार हो गया है !!

मगर ये प्यार होता क्या है ?

क्या,तुम प्यार नही समझती ?
पर तुम तो कहती थी मैं सब समझती हूं।

बस यही नही समझती,बताओ न प्यार क्या होता है ??

ये तो मैं भी नही समझता सोहणी...की प्यार क्या होता है !!

बस इतना जानता हूं...प्यार बताने की नही ,पाने की चीज़ है सोहणी!!
इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है !

किस तरह...बताओ न!!

किस तरह नही सोहणी...बस एक वक्त आता है,जब प्यार कांटे की चुभन की तरह खुद ब खुद महसूस होने लगता है।

मगर वो वक़्त कब आता है ??

उसका कोई वक़्त नही होता सोहणी ,किसी भी दिन बहार की पहली फूल की तरह अचानक वो वक़्त आ जाता है !
और जब वो वक़्त आता है सोहणी जानती हो क्या होता है ?

क्या होता है ...?

तब दुनियां के हर चीज़ के मायने बदल जाते हैं।
तब किसी की आँखों मे नदी की गहराइयां दिखाई देने लग जाती हैं और उनमें डूब जाने का जी करता है !!
तब चांद, किसी के माथे की बिंदिया बन जाता है।
और उसकी चांदनी किसी के पैरों के धूल पाने के लिए धरती पर लोट लोट जाती हैं !!
...देव,मैं समझ गई,
हां यही तो प्यार है,जो मैं तुमसे करती हूं।
जी चाहता है तुममे डूब जाऊं,तुम्हारे पैरों के धूल को को अपनी माथे का सिंदूर बनाऊं !!

...और उसकी आँखों से बून्द ढलक कर मेरे गालों पर टपक पड़े थे ।।

ये तुम्हे क्या हो जाता है कभी कभी,की बस हंसते हंसते यूँ ही रोने लग जाती हो ??
मैं तो तुम्हारे ही अनबूझे सवालों के जवाब देने की कोशिश कर रहा था।

...इसलिए कि ज़िन्दगी हंसने और रोने से मिलकर बनती है,
इन्ही धूप छांव से तो प्यार के नक्शे तैयार होते हैं देव ??

मगर तुम्हारा ये प्यार कैसा है,जिसमे शुरू से ही आंसू भी शामिल हैं !!

जिसमे आंसू नही होते वो सच्चा प्यार नही होता देव
वो देखो...बहती हुई नदी और और जन्म जन्मांतर से एक ही जगह खड़े नदी के ये दोनों किनारे...ये प्यार के ही तो एक उदाहरण हैं ।
नदी की किस्मत में ही है आंसू बहाना... और किनारों का काम है उन आंसुओ को खुद के वजूद में समेटते हुए उसकी मंजिल तक पहुंचाना ।

सोहणी...क्या हमारा प्यार भी नदी के इन दो किनारों के बीच बहते हुए पानी सा बह जाएगा ??

नही देव...ऐसा कुछ भी नही होगा !!
बस तुम मुझे अकेली न करना इस दुनियां के भीड़ में,अपनी सबसे कीमती चीज़,अपने मन को सौंपा है तुम्हारे हाथों में। कभी तुम्हारी सोहणी को इस बात का अफसोस न करना पड़े,ये तुम्हारी जिम्मेदारी है ।
एक निर्मल निश्छल प्रेम की नींव पड़ चुकी थी दो दिलों में... और उस प्रेम की आंच से न जाने कितने लोग पिघलने वाले थे।
सच ही तो कहा है किसी ने...जब किसी को किसी से प्रेम हो जाता है,तब दुनियां की हर चीज़ बेहद हसीन नज़र आने लगती है ।
हर वक़्त बस महबूब की यादों में खोए रहना ही दिल को भाता है...!!

उन दोनों का भी यही हाल हो गया,सोते जागते बस एक ही धुन सवार रहता,की हम अब किसी और के हो चुके हैं, खुद के भी नही रहे ।
मंदिरों में अगर सिर झुकाते तो एक दूसरे की खुशी मांगने के लिए, मन्त्र और पूजा बिल्कुल भी न आती,लेकिन मन्दिर में घन्टो बैठ कर बस एक ही बात दोहराते...मानो उनके लिए वो कोई महामंत्र हो ।