सोच
पार्वती की चोट अभी ठीक नहीं हुई थी ,उसकी जगह तब से सुमित्रा काम कर रही है। उस दिन भी उसने अपना काम खत्म कर दिया था,घर जाने के लिए बारिश रुकने का इंतजार कर रही थी।बारिश काफ़ी जबरदस्त थी।खीर मालपुओं की फरमाइश हुई तो हम उसमें व्यस्त हो गए।खीर बनाकर हमनें सबको गर्मा गर्म मालपुए देने शुरू किए। साथ ही सुमित्रा को भी खाने का आग्रह किया। उसने मना कर दिया। जब मजबरदस्ती उसे प्लेट में डाल कर देना चाहा तो वो हाथ जोड़ कर दो...