...

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बदल बदल सा गया
देखो आज उस वक़्त को याद करती हूं...
जब मैं बहुत मासूम थी...
और तुम ये कहा करते थे...
की तुम बहुत मासूम हो...
तुम मुझसे ये भी कहते थे,की किसी पर आसानी से विश्वास मत किया करो।
शायद तुम्हारी इन्हीं बातों ने मुझे मजबूर कर दिया,की मैं तुम पर बहुत सारा विश्वास कर लूं।
मगर मुझे क्या पता था...
की कहीं ना कहीं...
तुम मेरा भला चाहते थे...
और तुम इसलिए मुझे आगाह कर रहे थे..
क्योंकि तुम्हें पता था,की तुम मुझे धोखा दे दोगे।
और मुझे तुम पर यकीन था कि तुम एक दिन मुझे अपना लोगे।
पर मुझे लगता है कि तुम्हे पहले ही सब सच बता देना चाहिए था।
क्योंकि इससे मेरी ज़िन्दगी बच सकती थी...
बर्बाद होने से।
मगर अब जब मुझे सच मालूम हुआ है..
तो ये तो जान गई हूं, की तुम प्यार नहीं करते मुझसे।
और मुझसे दूर होना चाहते हो तुम,
मैं बोझ हूं तुम पर, तुम्हारी ज़िन्दगी की परेशानी हूं मैं, मैं सारा वक़्त तुम्हारे बारे में सोचती हूं मगर फिर भी मैने तुम्हारे बारे नहीं सोचा कभी, और ख़ुदग़र्ज़ हूं।
मैं ये सब जानते हुए भी, तुमसे दूर नहीं हो पा रही हूं।
शायद अब तुमसे मैं नफ़रत नहीं कर सकती।
और ना ही मेरे दिल में जो प्यार है तुम्हारे लिए , वो मिटा पाती हूं।
अब मेरे कहे गए हर एक शब्द बेअसर हैं तुम पर।
मगर मैं फिर भी लिख रही हूं।
तुम फिर आ जाओ,
तुम बापिस आ जाओ।

© jyoti