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वार्णिका - अनोखे प्रेम की दास्ताँ! ( भाग - 3 )
जो महिमा जी कमरे के बाहर खड़ी गुस्से से एक टक वार्णिका को घूरे जा रही थी उसके माफी मांगते ही उनका गुस्सा उनके शब्दों के द्वारा जुबां से बाहर आ जाता है और वह गुस्से से बोलती है,,,,, आगे,,,,,

ऐ री छौरी, तेरे अंदर शर्म नाम की चीज बची है की नही। अरे बेशर्म तुझे कितनी बार समझाना पड़ेगा की, घड़ी में छ बजते ही तेरे कदम रसोई में पड़ जाने चाहिए।

वो माँ,,, माँ,,, मु,, मु,,, मुझे पता ही नही चला सोते-सोते कब सुबह के दस बज गए। वार्णिका डरते हुए कहती है।

चुप,,,बिल्कुल चुप, एक शब्द और तेरी जुबां से बाहर आया तो एक तो चोरी ऊपर से सीना जौरी, काम से बचने के लिए नए नए बहाने बनाना कोई तुझसे सीखे। महिमा जी ने चिल्लाते हुए वार्णिका से कहा।

वार्णिका :- माँ,,, आप ऐसे चिल्ला क्यों रही हैं।

तो वही दूसरी और महिमा जी के चीखने चिल्लाने की आवाज सुनकर सभी सदस्य वार्णिका के...