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सुबह
सूरज तो रोज सुबह अपने वक़्त पर ही निकलता है, पर ज़िन्दगी इससे कुछ पहले ही शुरू हो जाती है। लोग अपनी जंग जारी रखने की कोशिश में चल पड़ते हैं और बच्चे जो स्कूल जाते हैं, वो भी निकल पड़ते हैं कुछ नया सीखने। वो इस बात से अंजान हैं कि आने वाली ज़िन्दगी में क्या होने वाला है। कल उनके लिए कैसी चुनौतियाँ लेकर आएगा,ये कह पाना काफी मुश्किल है। पर फिर भी पढ़ना सीखना ज़रूरी है ये समझने के लिए कि आगे आने वाले पेचीदे सवालों के जवाब कैसे ढूंढे जाएं। ये सच है कि स्कूल में सबसे ज़्यादा उसूल में होते हैं, पर काफी बाद में समझ आता है कि यही आज़ादी के चंद आख़िरी लम्हे थे। अब बात निकल ही गई है तो फिर इसे पूरा करना भी ज़रूरी है। ये तो तय है कि सच कुछ भी नहीं। शायद मरने के बाद पता लगे कि जो इतनी लंबी ज़िन्दगी जी थी, वो भी एक झूठ ही था। कौन जानता है कि जो हुआ वो क्यों हुआ और जो होने वाला है उसका ज़िम्मेदार कौन होगा। पर इतना तो है कि जिसने भी ये सारा खेल रचा, वो इसकी शुरुआत, अंत और वजह से पूरी तरह वाकिफ़ है। हमारे हाथ में बस हमारा आज और एक सोच सकने वाला दिमाग है। कौन इस खेल को कैसे खेलता है, यही मायने रखता है, क्योंकि अगर नतीजे मायने रखते, तो शायद इस खेल को बनाने वाला भी एक दायरे में बंध जाता। इतने सारे नियम हैं, पर कोई भी नियम नहीं। बड़ा अजीब सा है ये सब। क्या कह रहा हूँ, ये मैं भी नहीं जानता और कैसे बात पूरी करूँ, इस बात को लेकर भी उलझन में हूँ। बस इतना जानता हूँ कि ज़िन्दगी का मायने ढूँढने का सफर ही ज़िन्दगी का असली मायने है और आज़ाद मन ही इस सफर को पूरा कर सकता है, क्योंकि उसी में आगे बढ़ने की वैसी ललक होती है, जैसी सूरज की किरणों को धरती पर पहुँचने की होती है।
© @Supermanreturns