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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में वो एक मंजर था।।६
एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में वो एक मंजर रह गया था बाकी तो उस मंजर का सार व असतिव कलि के कलियुग में इच्छा व स्वार्थ से ग्रस्त अंकित किया गया है -वह मांजरा व मजर था एक स्वांग का है जिसमें इस असत्यता में यह मांजरा एक स्वांग होकर और बनकर कालचकृ को एक स्वांग को अनन्त व असंभव कर उस कालचकृ को सिद्ध होकर बैकुंठ में जाकर एक सिद्ध गोखिका होने से उसे अनन्त के लिए रोकर इसे एक असम्भव व अनन्त प्रेम गाथा स्वांग नाट्य रूपांतरण श्रृंखला के स्वांग नाट्य घोषित कर देते हैं।।
तो फिर बन जाती नपुंसकीय आहुतिका और ले लेती है उन नपुंसको की बलि ताकि पयलकर की
धारा के रक्त को कम बहाए।। और उसी में वह इच्छा व स्वार्थ से ग्रस्त होकर रोगिन योनि में प्रवेश कर किन्नर कल्याणवी बनकर उनमें इच्छा व स्वार्थ का सृजन उन्हें नपुंसकीय आहुतिका घोषित कर उन्हें एक डायनिका की बलि का उत्तम आहार बनाकर घोषित कर शून्य कर लेती है।। नपुंसकीय आहुतिका -निर्भाया सी समृयां इसलिए वह उसे परमात्मिका कर्मपोशित कर्मपोटली स्वागिंनी नपुंसकीय आहुतिका श्रापिका आदि घोषित कर देता और कालचकृ को नियंत्रित रखने में महत्वपूर्ण कार्य सौपत क्योंकि यह पहले ही अन्त व संभव में दर्ज होकर
एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में स्वागिंनी नपुंसकीय आहुतिका श्रापिका में अपने अस्तित्व व स्त्रीत्व दोनों को ही परिणाम व उल्लेखनीय है।।
🔴 वह गुनम्यादिनी आशायनी का तात्पर्य स्पष्टीकरण करण कर उल्लेख अंकित करिए -प्रशनवाचक।।
🔴 आत्मिका की परमात्मिका बन जाती है।।
आत्मा+परमात्मा
=परमात्मिका ही सर्वश्रेष्ठ ।।
सर्वप्रथम सर्वोपरि सर्वोच्च हैं।।
🔴 एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में आत्मा को परमात्मिका कर्मपोशित कर्मपोटली स्वागिंनी नपुंसकीय आहुतिका श्रापिका आदि घोषित कर सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि सर्वोच्च वेशया घोषित करने का क्या तात्पर्य व स्पष्टीकरण दर्जकर बयां किया गया है।।🔴वो उन्ह रातो की जगमगाती गलियों में खड़ी हुई कौन थी स्पष्टीकरण देते हुए व्ख्या पर आधारित बनाया गया काव्य संग्रह प्रकाशित किया जाएगा।।चाहे वो स्वागिंनी नपुंसकीय आहुतिका श्रापिका आदि में किसी भी लोकोक्ति में दर्ज हुई हो कालचकृ व उस स्तंभ शून्य से अर्जित गाथा में नायिका स्वागिंनी कालचकृवी सिद्ध गौ स्मारक बनकर बैठकुन्धाम प्राप्त गाऊ में जाकर कालचकृ में प्रस्तुत व जाकर स्थापित होकर वही निर्माणक में एक वेशया सिद्ध स्वागिंनी नपुंसकीय आहुतिका विध्वंसकीय प्रतिद्वंद्वी शून्यनिका शून्यनिकाविध्वंकीय तंत्रिका आदि बनाकर प्रकट हो जाती है।।अर्थात वह एक सिद्ध वेशया शून्यनिका आतमिका ही परमात्मा होकर से समय के रूपांतरण चित्रांक में भृमणगीय कहलाई जाती है तथा वास्तविकता में यह गाथा वह भृमणनाडरी घोषित की गई है।।