नाज़ुक सी कली (दर्दनाक मौत)
कुछ घटनाएं यूंही दफ़न हो जाती है और उसके लिए हम में से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं लेता है। ऐसी ही एक घटना मैं आप सबके सामने लाना चाहती हूँ। हम में से कुछ लोग तो सहानुभूति या समानुभूति रखने वाले होंगे ही जो सही गलत को ना सोचकर आगे बढ़े और अकेले कदम उठाने की कोशिश कर सके।
दिसंबर माह की बात है जिस वक़्त ठंड काफ़ी होती है और शाम ढलने से पहले ही लोग अपने घरों में होते हैं। शहरों में तो काम के सिलसिले में देर रात तक लोगों का आना-जाना बना रहता है परंतु गाँव में ये देखने को नही मिलता है। ऐसा नही है कि गाँव के लोगों को कोई काम नही होता, वहाँ भी वैसे ही लोग हैं पर माहौल जैसा बन गया है उसी में लोग खुद को ढाल लिए हैं या कहे तो वहाँ के लोगों द्वारा बनाए गए ही है जो आज के वक़्त में भी चलन में हैं।
पिताजी दुकान से लौटकर आये ही थे तभी रचना को आवाज लगाई। रचना की माँ भी चिल्लाती उससे पहले ही हाथ में पानी का गिलास लेकर रचना पिताजी के सामने खड़ी थी तभी...