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नाज़ुक सी कली (दर्दनाक मौत)

कुछ घटनाएं यूंही दफ़न हो जाती है और उसके लिए हम में से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं लेता है। ऐसी ही एक घटना मैं आप सबके सामने लाना चाहती हूँ। हम में से कुछ लोग तो सहानुभूति या समानुभूति रखने वाले होंगे ही जो सही गलत को ना सोचकर आगे बढ़े और अकेले कदम उठाने की कोशिश कर सके। 
दिसंबर माह की बात है जिस वक़्त ठंड काफ़ी होती है और शाम ढलने से पहले ही लोग अपने घरों में होते हैं। शहरों में तो काम के सिलसिले में देर रात तक लोगों का आना-जाना बना रहता है परंतु गाँव में ये देखने को नही मिलता है। ऐसा नही है कि गाँव के लोगों को कोई काम नही होता, वहाँ भी वैसे ही लोग हैं पर माहौल जैसा बन गया है उसी में लोग खुद को ढाल लिए हैं या कहे तो वहाँ के लोगों द्वारा बनाए गए ही है जो आज के वक़्त में भी चलन में हैं।
पिताजी दुकान से लौटकर आये ही थे तभी रचना को आवाज लगाई। रचना की माँ भी चिल्लाती उससे पहले ही हाथ में पानी का गिलास लेकर रचना पिताजी के सामने खड़ी थी तभी अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज़ बाहर में सुनाई पड़ती है। यह आवाज़ कोई अनोखी थोड़े ही थी जो रचना या उसके घरवालें सुनकर घर से बाहर जाते। घर के सभी सदस्य अपने काम मे व्यस्त थे और रात का भोजन कर सो जाते हैं।
अगले दिन रचना जब ट्यूशन पढ़ा रही होती है तभी कुछ बच्चियाँ आपस में बात कर रही होती है कि वो कल जो शोर मचा था कुत्तों का वो किसी का मांस खा रहे थे तभी रचना सुन लेती है और हमेशा की तरह डांटने की बजाय वह पूछ पड़ती है कि क्या बातें कर रही हो तुमलोग? तभी एक बच्ची उत्तेजित होकर बोल पड़ती है कि मैंम आपको नही मालूम है क्या की कल क्यों शोर मचा था, रचना बोलती है नही तो हमें कुछ भी नही मालूम है।
बच्चियों से जानकारी मिलती है कि खेतों में पड़े एक नवजात शिशु को कुछ कुत्ते नोंच डाले थे और बच्चे के रोने की आवाज़ सुनकर वहीं खेतों से गुज़रते एक बूढ़े व्यक्ति ने आवाज़ सुनी और कुछ लोगों को बुलाया। जब तक लोग पहुँचे शिशु लहूलुहान हुआ पड़ा था और अगले ही पल में उसने अपनी साँसे लेनी बंद कर दी। उसके बाद रचना पूछती है उस बच्चे का क्या होता है..? तो शायद बच्चियाँ बताती है कि पुलिस अगले दिन आयी थी।
यह सब सुनकर रचना के होश उड़ चुके थे उसने अपनी माँ को सारी बातें बतायी परन्तु प्रश्नों की श्रृंखला उसके मन को व्याकुल की हुई थी। उसके पिताजी दुकान से लौट चुके थे और घर आते ही उन्होंने भी यही किस्सा माँ को सुनाया पर ये क्या था जब उनके मुख से यह सुनाई पड़ा की वह किसी महिला ने नही बल्कि किसी कुँवारी लड़की ने अपने बच्चे को समाज की बदनामियों को झेल ना पाने के डर से फेंक दिया। रचना सारी रात जागती रही और यह सोचती रही की काश मैं उस नवजात से शिशु को बचा पाती और समाज से लड़कर अपने घर लाकर रखती।
पर क्या रचना वाकई ऐसा कर पाती? क्या उसे ये समाज कुछ नही कहता?
दो महीनें बीत चुके थे पर रचना इस हादसे को अभी तक भूल नही पायी थी। वह सोचती रहती की क्या कोई लड़की इतनी मजबूर भी हो सकती है जो अपने बच्चे को जन्म देकर मरने के लिए छोड़ दे और गलती की भागीदार अकेले वह लड़की रही होगी, ऐसा तो नही हो सकता। कहीं न कहीं क़ुसूर तो उस लड़के का भी रहा होगा जिसके साथ प्रेम में रहकर यौन-संबंध बनाया होगा। आज की दुनिया में प्रेम का अर्थ मात्र यही है, यदि प्रेम हो तो विवाह से पहले संबंध बनाओ बिना किसी परहेज़ के क्योंकि कुछ लड़कों को तो यह भी देखना होता है कि जिससे वह प्रेम करता है, वह लड़की उसकी बातों का कितना मान रखती है और कितना सच्चा प्रेम करती है। यदि लड़की मना करें तो शायद प्रेम नही और अगर मान भी जाए तो आगे जो भी गलतियाँ सामने आए, उन सबकी जिम्मेदार अकेले एक लड़की ही होती है। कितनी भी कोई बड़ी- बड़ी बातें कर ले पर लड़की को जितने गलत नजरिए से देखा जाता है वैसे ही लड़के को क्यों नही?
रचना यह सब बातें किसी से कह भी नही सकती थी और आँखों में आँसू लिए मन ही मन सोचती रही कि इन सब में उस मासूम से शिशु की क्या गलती थी जो ऐसी दर्दनाक मौत मारा गया।😭😭

© Roshni Singh

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