...

8 views

एक सवाल आजतक
अपने आप में ही सवाल था उस दिन का सुबह, जब मैं अपने क्लास को जा रही थी।। मेरे साथ मेरी कुछ सहेलियां भी थी। हम जा रहे थे तभी मेरी नजर छोटे-छोटे तीन बच्चों पे परी, एक बड़ी बहन थी जो लगभग दस वर्ष की होगी और दूसरी सात वर्ष की, और जो सबसे छोटा था वो लगभग पाँच वर्ष का होगा। किन्तु वो अपाहिज़ था वो चल नहीं पा रहा था।मेरी नजरे विचलित ही नहीं हो रही थी उन दृश्य के अलावा कुछ देखने को।मैंने जो देखा वो दृश्य वास्तव में करुणा से परे था। बड़ी लड़की किसी से कुछ मांग रही थी और दूसरी इस आश में की शायद आज उसकी दीदी को कुछ मिल जाएगा। वो अपनी नजर उस इंसान पर टिकाए हुई थी बस।वो भूल चुकी थी की उसके पीछे उसका अपाहिज भाई भी है। तभी एक ऐसी घटना होते-होते बची, उधर से एक बस आ रही थी तभी वो बच्चा भी अपनी बहनों की तरफ बढ़ता जा रहा था वो चल तो नहीं पा रहा था किन्तु खिसक-खिसक कर बढ़ने की कोशिस कर रहा था, की तभी बस की इतनी जोड़ की ब्रेक की आवाज हुई और मेरी आँखे बंद हो गई , मैं जोड़ से चीख पड़ी नही..मैं इतनी डरी थी की मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था मैंने धीरे-धीरे अपनी आँखे खोली तो देखा उस बच्चे और बस की दुरी में कुछ खास फासला नही था।वो डरा सहमा बच्चा अवाक् था कुछ खास समझ भी नही पाया वो की उसके साथ पल में ही क्या हो जाना था।।वो तो अनजान था की बस क्यों रुकी?? क्या हुआ आख़िर तभी उसकी दोनों बहने दौड़ कर आई और अपने भाई को वहाँ से हटा कर ले गई और अपने सीने से लगा कर रोने लगी।। जान में जान आई हो जैसे।और वो बस वाला दो-चार गालियाँ देते हुए चला गया।न जाने कहाँ-कहाँ से आ जाते है सड़क पे ही मरने को,इस तीखी और करवाहट भरी बोली ने तो आधी जान तो ले ही ली उस मासूम बच्ची की।। मुझे कुछ पता भी नहीं था,पहली बार उस दृश्य को देखा था मैंने की कौन थी वो, उनके माता-पिता थे भी या नही।। अपने जीवन को व्यतित करने को क्या-क्या कर रही, जिस उम्र में उन्हें स्कूल में होना चाहिए था वो सड़क पर सबके आगे हाथ फैला रही। मैं तो बेबस थी उस मासूम बच्चों से कई ज़्यादा लाचार तो मैं थी।कुछ नही कर पाई मैं उनके लिए न तो पैसे थे मेरे पास और न ही कुछ खाने की चीज़।मैं तबतक उन बच्चों को देखती रही जबतक की मेरी नजरें उनसे ओझल नहीं हुई।। मैं बस सोचती रह गई क्योंकि इसके अलावे मेरे पास करने को कुछ नहीं था।। बस कहा तो रब से की अगर इंसान को जन्म देते हो आप तो पेट पालने का कोई जरिया भी दे दिया करो, बच्चों ने क्या बिगाड़ा है क्यों उनके साथ ऐसा किया आपने।सच है न इंसान भूखा पेट भरने को कुछ भी कर गुजरता है किन्तु आप तो भगवान हो न जिस मासूम बच्चों के हाथों में किताब होना चाहिए। सर पर माँ-पिता का प्यार होना चाहिए था उन्हें सड़क पर यूं भीख मांगनी पर रही है।। बहुत गलत करते है भगवान इस बेकार की परीक्षा लेकर जिसमे वो उनसे परीक्षा लेता है जिसमे तो वो अनजान है और उससे कईं ज़्यादा नादान, जीवन के उसूलों जीवन के सच से,फिर छोटी सी उम्र में उन्हें यूँ क्यों भटका रहे। आज भी उन सवालों का जवाब मैं ढूंढती रही हूँ किन्तु कोई भी निस्पक्ष जवाब मुझे नही मिला।। क्या भगवान के द्वारा लिए गए परीक्षा में उम्र की कोई सीमा नही होती।क्या उसमें कोई मोल-जोल नहीं होता।
मिले भगवान तो पूछ डालूँगी अपने हर सवाल का जवाब।।
आज भी हजारों बच्चे इस परीक्षा से गुज़र रहें।किन्तु ये तो सब प्रभु की माया है।

माधवी ~😒🙏🙏।