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'"तुम्हारी कुमुद " भाग-3 लेखक-मनी मिश्रा
,"...आगे "

.....और मैं चाहता हूं तुम पीछे मत देखो ।क्योंकि मैं तुम्हें ही निहार रहा हूं तुमसे छुपकर ।तुम्हारे केश जिन्हें, तुमने आगे की ओर संवारा हुआ है।
न जाने क्यों मुझे अच्छे लग रहे हैं, कुछ चुभ सा रहा है मेरे मन में।
'जी में आता है! खुद की नजरों से ही तुम्हें छुपा कर कहीं रख दूँ।
.....यहां से चला जाऊं या यूं ही तुम्हें निहारता रहा हूं। समझ नहीं आ रहा।"
... तुम्हें पुकारू या चुप रहूं यह भी समझ नहीं पा रहा। "कुछ टूट रहा है मेरे मन में।
तभी किसी के पैरों की आवाज सीढ़ियों से आई है। वह जो भी है मुझे जरूर पुकारेगाऔर तुम पीछे पलटकर देखोगी.....यह सोच कर मैं घबराया हुआ हूँ।
"कहीं तुम मुझे गलत ना समझ बैठो। कहीं यह ना पुछ बैठो कि क्या काम है ?क्यों आए हो? तो मैं कसम से कुछ नहीं कह पाऊंगा ।
......महेंद्र बाबू ,अरे ओ महेंद्र बाबू "यह माधव की आवाज थी ।
हमारे काका दामोदर नाथ चतुर्वेदी का सबसे वफादार आदमी। जो बिना रुके सीढ़ियों से चढ़ा चला आ रहा था ।बेधड़क ...
"अरे बबुआ" तुम यहां खड़े हो और हम"तांगा"तैयार किए हुए ,कब से ...