Nikku Chapter no.11
सुप्रभात निक्कू अच्छा ये सुनो.....
दो आंखे तुम भी रखते हो दो आँखे हम भी रखते है अलग रह कर मजा कैसा निगाहे चार कर बैठो
अगर तुम हुस्न रखते हो तो मैं भी दोस्ती का इश्क़ लाया हूं तमाशा ये मोहब्बत के सरेबाज़ार कर बैठो,निक्कू को अच्छा लगा ये शायरी फिर हम कॉलेज चले गए,लंच हुआ निक्कू अपने छात्रावास मे चली गयी,फिर उसके बाद आई नही ,पर मैं गया निक्कू का फ़ोन आया पूछ रही थी क्या क्या चल रहा है कॉलेज मैं,मैंने बोला कि नाटक मतलब कुछ नही हो रहा है,अच्छा की तुम नही आई और अब मैं भी जा रहा हु । छात्रावास मैं रहने का एक फायदा था कि जब मन हो तब आओ ओर अगर पढ़ाई नही हो रही हो तो फिर से छात्रावास चले जाओ ,अकसर हम ऐशी ही करते थे और एक मित्र है राकेश वो तो बस उपस्थिति बनाने के लिए गुरुजी अशोक सर को कॉल कर देता था कि सर मैं आ रहा हु,मेरा उपस्थिति लगा दीजिएगा,मैं ओर मेरा मित्र कृष्णा पूरे कॉलेज मैं एक ही बच्चे थे जो जब मन हो निकल जाते थे सोने के लिए उस समय मैं राकेश,कृष्णा अच्छे दोस्त थे,हमलोगों को उपस्थिति से ज्यादा सोने की पड़ी रहती थी निक्कू मुझसे पूछी उपस्थिति हुआ मैं बोला नही वो बोली सचमे मैंने बोला ह वो मुस्कुरा कर बोली चलो ठीक है अच्छा हुआ मैं नही आई,अब मैं भी जा रही हु सोने तुम भी जाओ बाद मैं बात करती हूं ओर सुनो धन्यबाद मैंने पूछा क्यों?वो बोली बताने के लिए ,मैं बोला ह चल अब सो जा कबूतरी,, मिलता हु बाद मैं, प्यार से कभी कभी कबूतरी भी बोल देता था उसे,शाम मैं निक्कू को मैंने मैसेज किया और उसे बोला कि अच्छा हुआ तुम नही गयी आज उपस्थिति नही हुआ था,ओर मैं भी सो गया था लंच के बाद शाम मैं निक्कू से बात करते करते आचानक पता नही मुझे क्या हो गया मैंने बोला निक्कू अगर तुम्हारा कोइ प्रेमी नही रहता तो मे तुम्हे अपने प्यार का इज़हार कर देता उसने...
दो आंखे तुम भी रखते हो दो आँखे हम भी रखते है अलग रह कर मजा कैसा निगाहे चार कर बैठो
अगर तुम हुस्न रखते हो तो मैं भी दोस्ती का इश्क़ लाया हूं तमाशा ये मोहब्बत के सरेबाज़ार कर बैठो,निक्कू को अच्छा लगा ये शायरी फिर हम कॉलेज चले गए,लंच हुआ निक्कू अपने छात्रावास मे चली गयी,फिर उसके बाद आई नही ,पर मैं गया निक्कू का फ़ोन आया पूछ रही थी क्या क्या चल रहा है कॉलेज मैं,मैंने बोला कि नाटक मतलब कुछ नही हो रहा है,अच्छा की तुम नही आई और अब मैं भी जा रहा हु । छात्रावास मैं रहने का एक फायदा था कि जब मन हो तब आओ ओर अगर पढ़ाई नही हो रही हो तो फिर से छात्रावास चले जाओ ,अकसर हम ऐशी ही करते थे और एक मित्र है राकेश वो तो बस उपस्थिति बनाने के लिए गुरुजी अशोक सर को कॉल कर देता था कि सर मैं आ रहा हु,मेरा उपस्थिति लगा दीजिएगा,मैं ओर मेरा मित्र कृष्णा पूरे कॉलेज मैं एक ही बच्चे थे जो जब मन हो निकल जाते थे सोने के लिए उस समय मैं राकेश,कृष्णा अच्छे दोस्त थे,हमलोगों को उपस्थिति से ज्यादा सोने की पड़ी रहती थी निक्कू मुझसे पूछी उपस्थिति हुआ मैं बोला नही वो बोली सचमे मैंने बोला ह वो मुस्कुरा कर बोली चलो ठीक है अच्छा हुआ मैं नही आई,अब मैं भी जा रही हु सोने तुम भी जाओ बाद मैं बात करती हूं ओर सुनो धन्यबाद मैंने पूछा क्यों?वो बोली बताने के लिए ,मैं बोला ह चल अब सो जा कबूतरी,, मिलता हु बाद मैं, प्यार से कभी कभी कबूतरी भी बोल देता था उसे,शाम मैं निक्कू को मैंने मैसेज किया और उसे बोला कि अच्छा हुआ तुम नही गयी आज उपस्थिति नही हुआ था,ओर मैं भी सो गया था लंच के बाद शाम मैं निक्कू से बात करते करते आचानक पता नही मुझे क्या हो गया मैंने बोला निक्कू अगर तुम्हारा कोइ प्रेमी नही रहता तो मे तुम्हे अपने प्यार का इज़हार कर देता उसने...