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मिस रॉन्ग नंबर 9
#रॉन्गनंबर
~~~~ पार्ट 9 ~~~~

(जीत फोन आए लड़की की मदद के लिए निकलता है~~~~)

आखरी पल~~~~

जीत हिचकते हुए बोला.... वो... वो... दरअसल... वो.. तुम दिखाई नहीं दिए.... तो मुझे... पता नहीं.... मतलब... मैं... मतलब... तुम... मतलब.... तुम समझ रही हो ना...! मतलब.... कल जो कुछ भी हुआ तो... मैं थोड़ासा डर सा गया था.... कि.. तुम... मतलब.... न जाने तुम कहां चली गई ??


अब आगे~~~~

जीत ने जैसे तैसे बाजी तो संभाल ली थी । किंतु धड़कने थी की अब भी साथ नहीं दे रही थी । दिल अब भी जोरों से धड़क रहा था, एक तो उसे चोर समझ कर बेवकूफों की तरह ढूंढने के लिए जो दौडभाग मचाई फिर उसीके अंदर का चोर 'उसने' जितनी सफाई से पकड़ा था उस वजह से, ऊपर से पहली बार घर में कोई भी ना होते हुए किसी कमसिन खूबसूरत लड़की को घर में रखना ...!

"अरे...!! यूं ही देखते रहोगे...? चाय वाय पूछने का भी रिवाज है की नहीं तुम्हारे यहां ??? इंसान ही हूं.... चुड़ैल वगैरा नही...., मुझे भी खाने पीने की जरूरत पड़ती है । " .. वो खनकती आवाज में बोली तो ऐसा लगा मानो, बेमौसम.. कोयल की कुहुक सुनाई दी हो..!

वाह..... बहोत खूब आवाज पाईं है...! क्या गजब की मिठास है...! शब्दों में अपनापन तो ठूंस ठूंस कर भरा है ।
उसकी बातों से कहीं से ऐसा नहीं लगता की ये कोई पराई लड़की हो... ऐसा लगता है जैसे न जाने कितने जन्मों से उसे जानता हूं .... बिल्कुल अपनी सी...!
बातों का ढंग ऐसा की किसी भी इंसान के अंदर की हिचकिचाहट तुरंत फुर्र हो जाएं ।

उसके इस बिंदास अंदाज का भी जीत के ऊपर गहरा असर हो गया था । अभी अभी जो बंदा उस चुड़ैल उर्फ़ खूबसूरत लड़की का कभी खौफ खा रहा था या कभी चौंक रहा था... बड़ी अजीब अजीब - अलग अलग भावनाएं एक के बाद एक उसके दिल दिमाग के साथ जो खेल कर रही थी वो सब कुछ उसकी एक बसंत बहार जैसी खिलखिलाती हंसी में धराशाई हो गई थी । उसके लिए जो भी गलत फहमी जीत के दिमाग ने पाल ली थी वो एक झटके में खत्म हो गई थी ।
और अंदर भर गया था एक अपनत्व....! अंजान होते हुए भी असीम प्रेम की अनुभूति जीत को होने लगी थी ।
अब, दोनों को एक दूसरे का नाम पता मालूम न होते हुए भी दोनो एक दूसरे के जैसे एकदम अच्छे दोस्त हो गए थे ।

जीत अब भी उसके चेहरे को रह रह कर निहारे जा रहा था ।
ये भूल ही गया की 'उसने' जीत को चाय के लिए पूछा था ......।

अचानक एक खूबसूरत उंगलियों वाला हांथ जीत के आंखों के सामने मटकते हुए आया और दो तीन चुटकी बजाते हुए.... "जीत चाय मिलेगी न तुम्हारे यहां ?????" बोल गया.... ये सुनते ही , जीत जैसे सचमुच बेहोश था और उसकी चुटकियां बजाने से किसी गहरे सम्मोहन से जाग गया हो ऐसे जग गया और सकपकाते हुए... हां.... हां... बस अभी लाया....! कहते हुए कमरे से बाहर किचन की तरफ भाग गया ..!

( क्रमशः ~~~~ )

(आगे की कहानी की प्रतीक्षा करिए... अगले अंक में हम फिर जल्द ही मिलेंगे आगे क्या हुआ जानने के लिए...)
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