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वो आंचल
आंचल ! किसका आंचल? शब्द सुनकर ही दिमाग में मां का नाम ही आता है क्यूं आता है क्युकी ये शब्द केवल शब्द मात्र नहीं है ये वो अथाह सागर है जिसमें सब कोई डूबना चाहता है जिसकी कोई सीमा ही नहीं।
स्नेह , ममता , प्रेम, मधुरता, भाव, से घुला हुआ ये अथाह प्रेम का सागर ही तो आंचल है।
फिर भी हम उस आंचल से तब तक ही बधें होते है जब तक हम बच्चे होते है जब तक हमारी मासूमियत की एक झलक
दिखाई देती है।

जैसे ही बड़े होते है उस आंचल से दूर होते जाते है उसकी छांव से परे होते चले जाते है

एक दिन ऐसा आता है कि फिर हम इतना दूर हो चुके होते है कि हमको कुछ याद नहीं रहता सब कुछ भूल चुके होते हैं और उसी आंचल को हम घर से बाहर निकाल अपने से दूर फेंक देते हैं ।

क्यों ? इसलिए कि वो पुराना हो चुका है? या फिर इसलिए की उसकी अब कोई कीमत नहीं? या फिर इसलिए की अब आपको उसकी कोई जरूरत नहीं? या फिर इसलिए की आपको कोई आंचल का नया टुकड़ा मिल गया है ?

लेकिन आपको शायद मालूम नहीं होता की वही आंचल आज भी आपको अपनी छाया दे रहा होता है। उसकी प्रार्थना उसका आशीर्वाद आज भी आपकी ही खुशी की कामना करता है।

वो पुराना आंचल , उसकी वो खुशबू , उसकी वो मन की सुंदरता, स्वच्छता , वही प्रेम , वही ममता लिए हुए आपको वो गले से लगाना चाहती है आज भी वो अपना हाथ आपके सिर पर फेरना चाहती है आपके माथे को चूमना चाहती है
आपकी होठों में मुस्कान देखना चाहती है।

फिर भी हम उसको अपने से दूर कर देते हैं
क्या हम इंसान इतने स्वार्थी हो गए हैं कि सब कुछ भूल गए उसका त्याग, उसका भोलापन, उसकी तपस्या, उसका प्रेम,उसकी करुणा सब कुछ जरा भी याद नहीं हमको।

किसी नए के चक्कर में किसी पुराने को नहीं खो देना चाहिए। नए का तो कोई भरोसा ही नहीं पर पुराने में तो भरोसा कर ही सकते हैं उसकी तो कोई तुलना की ही नहीं जा सकती। सच ही किसी ने कहा है कि ओल्ड इज गोल्ड।







© anu singh