...

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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में एक दास्तान।।
मेरे पास इतने पैसे नहीं थे, लेकिन मैं आई को खोना नहीं चाहती थी ,बाबा के जाने का गम अभी दिल से निकला नहीं था । और डाक्टर
साहब ने मां को खोने ने की बात कह डाली !
मैं किसी भी हाल में आई को जीवित रखने के लिए रूपए इकट्ठा करने के लिए अपने सागे वालों के दरवाजे खट खटाने लगी ! मैं उनके सामने हाथ जोड़कर अपना दुखड़ा रोती उनसे भीख परन्तु हर कोई सहानुभूति दिखा कर रूपए देने से मना कर देता। जब अपने सगे वालों ने मदद नहीं कि तो कोई पराया क्यूं करेगा ? मैं इतनी लाचार और बेबस हो गई थी कि मुझे रूपए इकठ्ठा करने का कोई भी रास्ता नहीं दिख रहा था।मेरी एक सहेली ने मुझे राय दी कि ,कि मैं जहां काम करती हूं । वहां के
मालिक से विनती करूं शायद वह मेरी मदद कर दें। मैंने वैसा ही किया ! मैंने अपना सारा दुखड़ा मालिक को सुना दिया और उनसे २४०००रूपयो की मदद मांगने लगी।। उन्होंने मेरी पूरी बात सुनी और कहा वह मेरी मदद कर देगे । लेकिन अभी उनके पास इतने रूपए नहीं है ! इस लिए मैं शाम को उनके घर आकर रूपए ले जाऊ! उनकी यह बात सुनते ही मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा !मनो मुझे और मेरी आई
को एक नया जीवन मिल गया हो ! मैंने उनको धन्यवाद करते हुए शाम का इंतजार करने लगी।
#इन्तजार
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