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कर्पूर
कहानी के पिछले भाग में श्री ने मंगल से उपहार स्वरूप वर्ष माँगी थी...... अब आगे.....

मंगल और श्री शगुन के दाने लेकर सकुशल अपने नगर की ओर चले जाते हैं! कुछ वक्त बीतने के बाद कंचन नगरी के राजा मंगल के पास उनके सुदूर देश के परम मित्र राजा रति का एक संदेशा आया जिसमें लिखा था कि प्रिय मित्र पड़ोसी देश की सेना हमारे के देश पर आक्रमण करने वाली है संख्या बल में पड़ोसी देश की सेना १० गुना है ! मित्र आपसे अपेक्षा है कि समय उचित मदद करें हमें आपके साथ बेसब्री से इंतज़ार है....

कंचन नगरी से सुदूर देश की सीमा 3500 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में थी। मंगल ने अपने सेना में से सर्वोतम एक लाख पचपन हजार वीर सैनिकों को अपने साथ अपने मित्र की रक्षा के लिए ले जाने का निर्णय लिया।

सुदूर देश हिमालय की चोटियों में बसा था जहां पर अत्यधिक ठंड, बर्फीले और पथरीले रास्ते मार्ग में बाधा पैदा कर सकते थे।

मंगल ने श्री को राज्य की जवाबदारी और प्रजा की देखभाल का पूरा जिम्मा सौंप कर सुदूर देश की ओर कुच करता कि इससे पहले श्री मंगल को कपड़े में लिपटा पत्थर जैसा सफेद रंग का एक टुकड़ा देती है और वैसा ही एक टुकड़ा अपने पास रखती है!

और बोलती है कि इसके हवा में मिलने से पहले आप आ जाना वरना आपकी यह श्री आपको कभी नहीं मिलेगी!

श्री बोलती है मुझे और मेरी प्रजा को आपके लौट आने इंतज़ार है

आषाढ़ की पूर्णिमा का दिन था मंगल अपने सैन्य दल के साथ चल पड़ता हैं और 32 दिनों के लंबे सफ़र के उपरांत सुदूर देश की सीमा प्रवेश करता हैं और देखते हैं कि सुदूर देश पूरी तरह से खंडहर में बदल चुका था प्रजा जन...