...

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याद कब तक.. .
तुम्हें याद हूँ मैं या नहीं हूं अब?
जाने कितना ही वक्त गुजर चुका
न जाने कितनी राते कितने दिन गुजरे
न जाने और कितना वक्त लगेगा तुम्हे आने में

मैंने हर पल झांका है खिड़की से गलियारे की तरफ
उन मुसाफिरों में तुम्हारा चेहरा अबतक न दिखा मुझे
और न ही कोई खत आया तुम्हारा मुझतक
पर मेरी उम्मीद हर रोज ले जाती है मुझे चौखट तक

और फिर कबतक रखूँ हौसला
और मैं कबतक न तुमसे सवाल करूँ
आखिर दम निकले भी तो कैसे निकले
कैसे तेरे बिन छोड़कर उन गलियों मे चलूँ

मेरी आँखों की नमी तुमतक
मेरी बाहों की तडप अब तुम तक
और अब न हो सकेगी गुस्ताखी
तेरे बिन जीने की मुझे
अब आखिर बता भी दो
और इंतजार कब तक

© Akash dey