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मानव धर्म
इतिहास के पन्नो को देखो पलटकर
भविष्य वर्तमान से सुंदर होगा

अध्यात्म की दृष्टि से न देखो चलेगा नैतिकता के अनुरूप पढ़े अच्छा लगेगा

धर्म मजहब की बात यहाँ नहीं होगी
मानव धर्म का उल्लेख होगा

मैं बात कर रहा हूं गीता की

पढ़कर आंनदित हुआ लगा जैसे मैं किसी बंधन से मुक्त हो गया

कृष्ण हिंदुओ के आराध्य हैं

उनकी वाणी गीता है

अगर मोह के बंधन से निकल कर हम परमानंद को पराप्त करते हैं

तो गीता ज्ञान है


तर्क बहुत है महसूस करने को
साधन बहुत है मन को खुश करने को

तो गीता ही क्यों ?

गीता में कर्म को प्रधान माना गया है
मानवधर्म का वर्णन है

एक राम नाम का व्यक्ति जो रोज खाने पीने की साधन जुटाता था

दिन भर मेहनत करता था

और रात को थक कर सो जाता था


कभी किसी से शिकायत नहीं करता था

अपने काम में मुग्ध होकर वह जंगलो में विचरण करता था

एक बार उसे एक साधु वन में मिले
जो एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे

वह सामने ही पेड़ को काटकर लकड़ियां इकठ्ठा कर रहा था

उसकी नजर जब साधु पे पड़ी तो उसने उनके समीप जाकर उनसे उनके मार्ग के बारे में पूछा

साधु ने हँसकर कहा ईश्वर को इंसानों में ढूंढ रहा हूँ

राम हंस पड़ा और कहा कि साधु महाराज आप ज्ञानी हैं

और भगवान को इंसानों में ढूंढ रहे हैं

आप ही कहते हैं कि भगवान स्वर्ग में रहते हैं

धरती पे कहाँ मिलेंगे


साधु ने कहा तू नास्तिक है भगवान को नही मानता फिर भी तुझमे मुझे भगवान नजर आ रहे हैं

राम हंस पड़ा और कहा कि मैं तो एक इंसान हूँ

और न मैं भगवान की पूजा करता हूँ


साधु ने कहा भगवान की पूजा करना भक्ति नहीं होती

भगवान की दी हुई ज्ञान को अपने आचरण में शामिल करना भगवान प्राप्ति के साधन है

अर्थात

तुम कर्म करते हो अपने परिवार का पेट पालते हो

किसी भी व्यक्ति की मदद के लिए तैयार रहते हो

आर्थिक और परिश्रम से अपना योग दान देते हो

किसी की बुराई नहीं करते

हमेशा मानवता का पालन करते हो


तुम वो नहीं करते हो जो मंदिर में चढ़ावा चढ़ाकर अपने को ईश्वर भक्त मानकर जो लोग सारे बुरे काम करते हैं

उनको ईश्वर प्राप्ति कदापि नहीं होती

क्योंकि उन्होंने इंसान में बसे ईश्वर को कभी देखा ही नही


गीता के अनुसार जो कर्म निष्काम भाव से ईश्वर के लिए जाते हैं वे बंधन नहीं उत्पन्न करते।
वे मोक्षरूप परमपद की प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस प्रकार कर्मफल तथा आसक्ति से रहित होकर ईश्वर के लिए कर्म करना वास्तविक रूप से कर्मयोग है और इसका अनुसरण करने से मनुष्य को अभ्युदय तथा नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है।

ईश्वर हैं निराकार हैं

नर सेवा ही नारायण सेवा है

परोपकार ही सेवा है ईश्वर का


मेरी पहली motivational story आशा करता हूँ

पहली बार लिख रहा हूं

आप सबका स्नेह मिले
🙏🙏🙏🙏🙏🙏


© kuldeep rathore