मोहब्बतें या भ्रम जाल (भाग 8)
मुकेश के ऑपरेशन के समय (भूतकाल में)
अस्पताल में जिस दिन मुकेश की चोट लगी थी। उस दिन मुकेश को धीरे-धीरे होश आ रहा था, मुकेश के पापा को डॉक्टर बता रहे थे, कि मुकेश की याददाश्त भी जा सकती है या वह कोमा में जा सकता है।यह सुनकर मुकेश के दिमाग में एक ख्याल आता है, कि अगर वह कुछ दिन के लिए याददाश्त खोने का नाटक करें तो शायद वह सब की माफी मिल सकती है नहीं तो इस तरह तो कोई उसे माफ नहीं करेगा,इसलिए वह झूठा याददाश्त खोने का नाटक कर रहा करने लगा,पर जब शिखा का व्यवहार उसके साथ वैसा ही रहा तो उसने लखनऊ जाने का फैसला किया ।लखनऊ में शिखा और मुकेश दोनों अकेले होते और वह शिखा से आराम से बात कर सकता था इस बात का अंदाजा तो उसे अब हुआ था कि शिखा को पहले ही दिन से उस पर शक था। मुकेश तो शिखा के साथ अकेले लखनऊ आकर ही इतना खुश था कि वह इस खुशी में यह बात तो भूल ही गया था कि वह याददाश्त खोने का नाटक कर रहा है। शिखा को तो पहले ही शक था और अब तो यकीन हो गया था।
वर्तमान समय में
शिखा गुस्से में मुकेश को घूर रही होती है ।मुकेश अपनी सोच से बाहर आता है।
शिखा- तुम बोलते क्यों नहीं मुकेश ।
मुकेश- शिखा मैं याददाश्त खोने का नाटक कर रहा था।
शिखा- क्यों ! क्यों...