माँ
"कितना बोलती हो चुप रह करो और थोड़ा कम खाया करो रोटियां सारी तुम्हारे लिए नही है यहाँ तुम्हे तो बस खाना आता हैं पता नहीं बुढ़िया मर क्यों नही जाती मर जाए तो मेरी मुसीबत खत्म हो"
ये वीर के शब्द थे एक दिन पहले अपनी माँ के लिए जो आज उसके सामने सफेद चादर में लिपटी जमीन पर सो रही थी| बेटा माँ को देख नजदीक गया और बोला ये लाश को अब तक घर में क्यों रखा हैं लेके जाओ कोई इसे जल्दी| तभी एक भारी स्वर में आवाज आती है पर बेटा इनका अंतिम संस्कार तो तुम्हे ही करना है तो तुम भी साथ चलो| वीर बोलता है...
ये वीर के शब्द थे एक दिन पहले अपनी माँ के लिए जो आज उसके सामने सफेद चादर में लिपटी जमीन पर सो रही थी| बेटा माँ को देख नजदीक गया और बोला ये लाश को अब तक घर में क्यों रखा हैं लेके जाओ कोई इसे जल्दी| तभी एक भारी स्वर में आवाज आती है पर बेटा इनका अंतिम संस्कार तो तुम्हे ही करना है तो तुम भी साथ चलो| वीर बोलता है...