...

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शुक्रिया...
अपने जन्मदिन पर शाम को
किसी ज़रूरी काम से बाहर जाना था,पर वही कॉफी हाउस,वही टेबल,मुझे बुला रही थी ।
लिहाजा, दोपहर को ही कदम उस ओर बढ़ चले ।
उसी कुर्सी पर बैठ कर दो कप काॅफी आर्डर की ही थी कि,फोन की घंटी बजी ।
बाहर जा कर फोन से,बात कर वापिस आने पर देखा, एक बहुत खूबसूरत केक,जिस पर लाल गुलाब की आकृति बनी थी,साथ ही एक नोट,जिस पर जन्मदिन की,शुभकानाएं लिखी थी,टेबल पर रखा था ।
सच में बहुत हैरानी हुई ।नोट देखा तो तुम्हारा नाम लिखा था । समझ नहीं पाई,ये क्या है । लाल गुलाब वाला केक ? तुम क्या कहना चाहते थे ? दूरी भी और शुभकामनाएं भी ।
तुम सोच रहे होगे,मैं खुश हो जाऊँगी ?
अफसोस,तुम समझ नहीं पाए मुझे । खैर, केक काट कर मैंने स्टाफ को दे दिया । बात यहीं आकर रुक गई,गुलाब, लाल या पीला ।
मैं पीला गुलाब रख कर,लौट आई। इस बार एक नोट भी रखा था।
'शुक्रिया' लिख कर ।
© Shivani Singh