...

3 views

बीते कितने सावन
आज प्रातःकाल जब नींद खुली तो सूरज की लालिमा मेघों में लुका छिपी कर रही थी| उसी क्षण मेरी स्मृति एकाएक कौंध सी गई | ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यह दृश्य मेरे अतीत के बड़े ही मार्मिक पलों को एक बार फिर से वापस बुला रही हो| वास्तव में ऊषा काल में जब बादल सम्पूर्ण धरा को सुरज की किरणों से मुक्त करके बरखा का रूप संवारते हैं तो हमें(मुझे) हमारे उनकी छवि को मन मस्तिष्क में निखार देते हैं क्योंकि कुछ ऐसे ही सावन के दिनों में हम उनके साथ आम के बाग में सैर करने जाया करते थे और वहाँ घंटों बैठकर स्वत: ही आनन्दमयी हो जाते थे| गाँव से मात्र एक मील दूर ही बाग में हम अनेकों क्रीडाएँ (खेल मात्र) किया करते थे| बाग के एक छोर से दूसरे छोर तक वो हमें प्रकृति की अनूठी दास्तानें बयां करते थे और हम अपने आप में ही आत्म विभोर हो उठते थे| पर इस बात का हमें इल्म हमें तब ही हुआ कि जितना इश्क हमें उनसे है, उतना ही इश्क हमें प्रकृति से भी है| आप सिर्फ इतना ही समझ लीजिये के वो प्रकृति का ही द्वितीय रूप हैं| जिस प्रकार प्रकृति की अदभुत छठा प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है, उसी प्रकार इस ऋतु में उनके साथ बाग की सैर का विचार स्वंयमेव ही जाग्रत हो उठता है| अपने प्रेम भावों का आदान प्रदान करके जब हम बाग से लौट कर घर आते थे तो स्नान के पश्चात आहार भी संग में ही किया करते थे और पुन: एक बार फिर से इसी दिन की प्रतीक्षा करने में मशगूल हो जाते थे| जो अनुभूति एक पपीहे को बरखा का पहला रस चखने से होती है, वही अनुभूति हमें ऐसे दिनों में एक दुसरे में समा जाने से होती है| सावन में बारिश की बूंदें जब हमारे चेहरे पर पड़ती थी तो भीगने के लिए मजबूर हो जाया करते थे| उस समय हम दोनों अपने भविष्य के सुरक्षित हो जाने के बाद अपने इश्क को परवान चढाने की कसमें खाया करते थे, पर आज एक और पहलू देखिए कि भविष्य भी सुरक्षित है पर इश्क में रिस्क आज भी है| 10 साल तो पूरे हो ही गये पर अभी कितनी सदियाँ और शेष हैं कुछ ज्ञात नहीं| लेकिन जो आनन्द उस दिन की प्रतीक्षा करने में है, शायद ही किसी चीज में हो| फिलहाल आज प्रकृति ने इस सावन में सभी की उपस्थिति दर्ज करायी सिर्फ तुम ही नहीं थे| एक बात और कहनी थी हमें उनसे :-

मोहब्बत बरसा देना तू, सावन आया है|
तेरे और मेरे मिलने का मौसम आया है||

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
© poetrioter