...

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पैग़ाम
जिंदगी कब कैसे क्या मोड़ लेगी हमे पता नहीं होता। हर एक दिन एक नये जज़्बात नई शुरुआत ले के आता है। वक़्त के साथ साथ कुछ यादें बस पीछे छुट जाती है और हम आगे बढ़ जाते है।
कुछ बचपन की यादें कही तहखाने मे पड़े खिलौनों मे जलक आती है।
कुछ पुरानी शॉल और स्वेटर की बुनाई आज भी रिश्तों की गर्माहट मेहसूस कराती है। पापा का वो पुराना कोट आज भी वैसा ही है। दादाजी की छड़ी और दादिमा की पीतल की डिबिया भी मौजूद है।
कुछ स्कूल की पुरानी किताबे और कुछ तस्वीरें मिली। जैसे अभी कल ही की बात हो। अब तो सब कही दूर से हो गए है।
जिंदगी की ज़िम्मेदारियों ने सब को मशरूफ कर रखा है। मेरी एक डायरी भी है जो काफी खास है।
कोई पढ़ेगा भी तो उसे समझ कुछ नहीआयेगा।
तुम्हारे अलावा कोई नही समझ पायेगा की किसकी बात हो रही है इसमे।
सोचा था तुम्हें भेजूंगी तोहफे मे ये यादें। बिना नाम का पैग़ाम और अंदर रखा हुआ वो सुखा गुलाब शायद तुम्हें मेरी खबर दे।
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