ऐ मूर्ख लड़कियों:-
ऐ मेरे देश की मूर्ख लड़कियों तुम आखिर बहक कैसे जाती हो?
कोई भी तुमको बहला देता है और तुम बच्चों के जैसे बहक भी जाती हो।
रोज का अखबार नहीं पढ़ती क्या? प्रेम के कीड़े से खुद को क्यों कटवाती हो
गंवार गांव की लड़कियों को कहती हो तुम और स्वयं ही ऐसी मूर्खता कर जाती हो।
कैसे पढ़ी लिखी होकर तुम ऐसा कदम उठा सकती हो।
जाहिल जैसे प्रेम में पड़ कर स्वयं मौत को गले लगा सकती हो।
अंधी हो क्या जो तुम्हें ये छल दिखाई नहीं देता।
एक एक कर तुम कैसे प्रेम बलि दें स्वयं को मिटा सकती हो ।
अरे कुछ तो शर्म करो तुम्हारी ऐसी नृशंस हत्या से देशवासियों का भी दिल दहल जाता है।
और फिर तुम में से कोई और श्रद्धा आतुर हो जाती है मौत को गले लगाने को।
जानती भी हो हमारी आत्मा तक कांप जाती है।
मन अशांत हो निढ़ाल हो जाता है। जब भी देश की किसी बेटी के साथ ऐसी बर्बरता का समाचार आता है।
अपनी नहीं तो कम से कम अपने बूढ़े मां बाप के बारे में एक बार सोच लिया करो।
जिनके जिगर का तुम प्यारा सा टुकड़ा हो।
तुम्हारे इस तरह मरने से उनका क्या हाल होता होगा,
पर इससे तुम्हें क्या ही फर्क पड़ सकता है।
अरे मरना ही है तो जाओ फौज में भर्ती हो जाओ।
ऐसे चूहे जैसी मौत से तो लाख गुना बेहतर मौत मर पाओगी
मर भी गई और फिर ,बीस क्या अस्सी टुकड़ों में भी अगर कट जाओगी तो भी वीरांगना और शहीद की उपाधि पा जाओगी।
बेटियो को ये जहर उगलते शब्दभाव मेरे आज सुबह की दिल को झंझावात कर देने वाली खबर से उठे मेरे दुख का प्रतिघात है।
मुंबई की सरस्वती के टुकड़े टुकड़े कर कुकर में पकाने और फिर मिक्सी में पिस के मिट जाने और मेरे कुछ भी न कर पा सकने का संताप है।
मत लजवाओ परवरिश को अपने मां बाप की
कुछ तो मान रखो देश की आन बान और शान की।
संभलो और संभालों दूसरों को भी अरे लड़कियों कुछ तो इज्जत कर लो पहले तुम अपने आप की।
समझ सको तो समझो मेरी बहन बेटियों तुम हम सबकी जान हो।
हमारा सौभाग्य तुमसे ही फिर तुम क्यों नोचवां रहीं शरीर की बोटी बोटी तुम प्यारे हिंदुस्तान की दुलारी शान हो।(डॉ. श्वेता सिंह)
© Dr.Shweta Singh
कोई भी तुमको बहला देता है और तुम बच्चों के जैसे बहक भी जाती हो।
रोज का अखबार नहीं पढ़ती क्या? प्रेम के कीड़े से खुद को क्यों कटवाती हो
गंवार गांव की लड़कियों को कहती हो तुम और स्वयं ही ऐसी मूर्खता कर जाती हो।
कैसे पढ़ी लिखी होकर तुम ऐसा कदम उठा सकती हो।
जाहिल जैसे प्रेम में पड़ कर स्वयं मौत को गले लगा सकती हो।
अंधी हो क्या जो तुम्हें ये छल दिखाई नहीं देता।
एक एक कर तुम कैसे प्रेम बलि दें स्वयं को मिटा सकती हो ।
अरे कुछ तो शर्म करो तुम्हारी ऐसी नृशंस हत्या से देशवासियों का भी दिल दहल जाता है।
और फिर तुम में से कोई और श्रद्धा आतुर हो जाती है मौत को गले लगाने को।
जानती भी हो हमारी आत्मा तक कांप जाती है।
मन अशांत हो निढ़ाल हो जाता है। जब भी देश की किसी बेटी के साथ ऐसी बर्बरता का समाचार आता है।
अपनी नहीं तो कम से कम अपने बूढ़े मां बाप के बारे में एक बार सोच लिया करो।
जिनके जिगर का तुम प्यारा सा टुकड़ा हो।
तुम्हारे इस तरह मरने से उनका क्या हाल होता होगा,
पर इससे तुम्हें क्या ही फर्क पड़ सकता है।
अरे मरना ही है तो जाओ फौज में भर्ती हो जाओ।
ऐसे चूहे जैसी मौत से तो लाख गुना बेहतर मौत मर पाओगी
मर भी गई और फिर ,बीस क्या अस्सी टुकड़ों में भी अगर कट जाओगी तो भी वीरांगना और शहीद की उपाधि पा जाओगी।
बेटियो को ये जहर उगलते शब्दभाव मेरे आज सुबह की दिल को झंझावात कर देने वाली खबर से उठे मेरे दुख का प्रतिघात है।
मुंबई की सरस्वती के टुकड़े टुकड़े कर कुकर में पकाने और फिर मिक्सी में पिस के मिट जाने और मेरे कुछ भी न कर पा सकने का संताप है।
मत लजवाओ परवरिश को अपने मां बाप की
कुछ तो मान रखो देश की आन बान और शान की।
संभलो और संभालों दूसरों को भी अरे लड़कियों कुछ तो इज्जत कर लो पहले तुम अपने आप की।
समझ सको तो समझो मेरी बहन बेटियों तुम हम सबकी जान हो।
हमारा सौभाग्य तुमसे ही फिर तुम क्यों नोचवां रहीं शरीर की बोटी बोटी तुम प्यारे हिंदुस्तान की दुलारी शान हो।(डॉ. श्वेता सिंह)
© Dr.Shweta Singh