...

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आंखों की भाषा
संजय आज बहुत खुश थे आज अपने जीवन मे खुशियों का रंग भरने जा रहे थे।
जल्दी तैयार होकर निकलना था इसीलिये अपनी माँ के कहने पर भी कुछ नहीं खाये।
तैयार होकर आकर गाड़ी में बैठ गये और अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगे। गाड़ी तेजी से आगे बढ़ने लगी संजय को तो बस प्रिया से मिलने की बेकरारी थी। कितना कुछ कहना था प्रिया से संजय कभी ये भी नहीं बताये प्रिया से कि वो कितना पसंद करते हैं प्रिया को।संजय ये सोचकर खुश थे कि जब से वो शादी करने को बतायेंगे तो प्रिया के चेहरे की खुशी देखते बनेगी।यही सब सोचते हुये कब प्रिया का घर आ गया पता ही ना चला।वो तो ड्राइवर ने जब पुछा कि साहब यहीं आना था न तब संजय का ध्यान टुटा बोले हाँ यहीं रोक दो गाड़ी।कुछ दुर पहले ही गाड़ी से उतर गये और ड्राइवर से कहे कि तुम यहीं रहना देखना यहाँ बच्चे बड़े शैतान हैं गाड़ी पर कुछ भी फेंककर मारते हैं तो तुम गाड़ी का ध्यान रखना और जब बूलाऊँ तब आना कहकर संजय प्रिया के घर की तरफ मुड़ गये संजय नेदूर से ही देखा घरपर चहल-पहल लग रही थी स॔जय सोचे चलो देखते हैं क्या है अब तो प्रिया के पास आ गया हु पुछ लुंगा क्या हो रहा है।तब तक संजय को प्रिया के पापा दिख गये संजय तो उन्हे पहले से जानता था संजय के पापा और प्रिया के पापा दोस्त थे।संजय झुक कर प्रिया के पापा का पैर छुआ तो प्रिया के पापा संजय को गले लगा लिये।
संजय से पुछे घरपर सब ठीक है तुम डाक्टर बन गये संजय ने कहा हाँ अंकल इसीलिए तो आया हुं।वो बोले अचछा ठीक है तुम बैठो मै अभी आता हुं तो संजय पुछे अंकल कुछ था क्या यहाँ काफी चहल-पहल दिख रही है।प्रिया के पापा बोले हाँ बेटा आज प्रिया अपने ससुराल चली गयी।छोड़ो ये सब बेटा किसलिये आये हो तुम कुछ कह रहे थे।संजय बोले कुछ नहीं बस आपसे मिलना था तो चले आये अब चलता हुं कहकर संजय जल्दी से जाकर गाड़ी मे बैठ गया औरड्राइवर से बोला जल्दी घर चलो ड्राइवर कितना कुछ कहा संजय से लेकिन संजय ना कुछ सुने ना जवाब दिये।
संजय घर पहुंचकर सीधे अपने कमरे मे जाकर लेट गये समझ ही नहीं पा रहे थे कि वो क्या करें अब फिर देर तक रोते रहे।अचानक उन्हे कुछ ध्यान आया और अपने आँसु पोछ लिये फिर उठे पेन डायरी ले आये और कुछ लिखने लगे।लिखकर उसे खत की तरह मोड़कर प्रिया के पास भिजवा दिये।
संजय का ड्राइवर प्रिया केससुराल जाकर खत दे आया।
प्रिया खत देखी उसपर संजय लिखा था उसे तो संजय याद भी नहीं था फिर खत खोली सोची की देखें तो क्या है।
अब खत पढ़ने लगी और उसे सब याद आने लगा जो कभी नहीं समझी थी आज समझने लगी ।
जब प्रिया ग्यारहवीं मे दाखिला ली तब की बात थी।पहले दिन काॅलेज गयी तो थोड़ी डरी हुयी थी और कोई पहचान का भी नही था।एक लड़का था जो हमेशा उसकी मदद के लिये तैयार रहता था।प्रिया थी भी बहुत सुन्दर पढ़ने मे भी बहुत होशियार थी।वो लड़का हमेशा उसका ध्यान रखता था छुप-छुपकर उसे देखता रहता था।
एक दिनअपना नाम बताया था ।कहा कि मेरा नाम संजय है आपका नाम क्या है तो बोली प्रिया नाम है हमारा वो बोला ओ के फिर कभी कुछ नहीं कहा।
फिर खत आगे पढ़ने लगी लिखा था कि प्रिया मुझे डाक्टर बनना था तुमसे शादी करनेके लिये सोचा था कि जब मै डाक्टर बन जाऊंगा तो तुम्हारेपापा मना नहींकरेंगे इसीलिए मै ठंढ मे स्वेटर के पैसा से टयूसन पढ़ता था और कितनी भी ठंढ रहे मै सीर्फ शर्ट पहनकर पढ़ने जाता था तुमने कभी ध्यान नही दिया छोड़ोकया शिकायत करें तुमने कभी मुझे देखा ही नहीं।मै तो तुम्हे पाने के लिये तुमसे दुर चला गया और तुम मेरी तरफ देखी भी नही ।यदि मेरी तरफ देखती तो मेरी आँखों की भाषा पढ़ पाती।
कोई तुम्हे इतना चाहता है और तुमने उसे खो दिया।अब पछताओ जिस आग मे मै जल रहा हूं तुम भी जलो।
अलविदा
जिसकी तुम हो ना सकी वो सीर्फ तुम्हारा संजय............