कड़वा सच
लोग कहते हैं यह आधुनिक युग है, इसमें वैचारिक उन्नति हुई है। पर मुझे तो अपने आस पास ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया। जिस युग को आज के तथाकथित बुद्धिजीवी पिछड़ा युग कहते हैं उस युग में भौतिक वस्तुओं के मूल्य कम थे और मानवता अधिक मूल्यवान थी। लोगों में अपनापन मुखर रूप से दिखता था। आज के रक्त संबंधों में अपनेपन की वो मधुरता नहीं दिखती जो उस समय के एक मोहल्ले के निवासियों में थी।
ये तो सामान्य लोगों की बात है, यदि बात एक अक्षम व्यक्ति की करें तो उसकी स्थिति में तो पहले से अधिक दैनीयता देखने को मिलती है। माना कि तब की तुलना में आज की सरकार ने अक्षम व्यक्ति को सामाजिक मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई प्रशंसनीय निर्णय लिए हैं, पर कोई भी मुख्यधारा में तब आ सकता है जब समाज उसे मुख्यधारा में स्वीकार कर सके।
इस आधुनिक युग के विषय में एक और बहुत बड़ी भ्रांति प्रचारित है, लोगों को कहते पाया जाता है कि इस युग में लिंग भेद नहीं है, हो सकता है सामान्य लोगों के परिपेक्ष में यह बात सही हो पर...
ये तो सामान्य लोगों की बात है, यदि बात एक अक्षम व्यक्ति की करें तो उसकी स्थिति में तो पहले से अधिक दैनीयता देखने को मिलती है। माना कि तब की तुलना में आज की सरकार ने अक्षम व्यक्ति को सामाजिक मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई प्रशंसनीय निर्णय लिए हैं, पर कोई भी मुख्यधारा में तब आ सकता है जब समाज उसे मुख्यधारा में स्वीकार कर सके।
इस आधुनिक युग के विषय में एक और बहुत बड़ी भ्रांति प्रचारित है, लोगों को कहते पाया जाता है कि इस युग में लिंग भेद नहीं है, हो सकता है सामान्य लोगों के परिपेक्ष में यह बात सही हो पर...