...

31 views

मैं खुदसे मिली
मैं खुदसे मिली
छाता हाथ में लेकर वो बारिश से लड़ती
चली आ रही थी एक लड़की अपने सपनों से झगड़ती
सुना है अपने ख़यालों में खोई रहती
वो चंचलं हंवासी आझाद परिन्दी
कभी उड़ जाती पंछियों के साथ
कभी तितलियों को पकड़ लेती हाथ
हर सुबंह उसकी मुस्कान कालियोंसी खिलती ।
अंगड़ाइंयी के बाद सिधा भंगवान से बाते करती
कभी सुपनो में टूटी छतों को ठीक करती
तो कभी बंगलो के गुरुर से बाते करती
कभी लरकीरों की गहूराईयों को समझती
तो कभी बिना बात के अकेले ही हूँस पड़ती
बालों से खेलती कही तो खो जाती वी
बचपन में खोकर कहानियों में प्रहु जाती वी
पापा का प्यार माँ की फटकार
बहन भाई से लड़ाई और दादा दादी का दुलार
इन सबके साथ बडी हुई ये नादान-जिद्दी
पगलिसी-समझदार-सेंहमिसी ये झल्ली
यह बारिंश मुझे उससे मिला गई
उस चाय और पकोड़े के साथ जब मेरी उससे मुलाक़ात हुई
आँखों में सपने लिये मंजिल पार कर रही थी
छाता हाथ में लिये वो फिर बारिश से लड़ रही थी
मैं मिली हु उससे आज ही अपने आप में
खुदको खोकर खुदकी गहराईयों में
मैं मिली हू हर उस लड़की से आज
जो जिद्दी है सपनो में पर जिना जानती है होकर आझाद।