कीमियागर... (भाग 1(a))
लड़के का नाम था सेंटियागो। जब वह अपनी भेड़ों के झुण्ड के साथ उस पहुँचा तब शाम ढल रही थी। गिरजाघर की छत बहुत पहले कभी गिर चुकी थी, और जिस स्थान पर कभी प्रार्थना-सामग्री का कक्ष हुआ करता था, वहाँ अब चिनार का एक विशाल दरख्त उग आया था।
उसने वहीं पर रात बिताने का फैसला किया। उसने टूटे दरवाज़े से सारी भेड़ों को अन्दर किया, और उसके बाद वहाँ लकड़ी के कुछ लड्डों से एक बाड़ तैयार कर दी ताकि रात में भेड़ें बाहर निकलकर यहाँ-वहाँ न भटकने पाएँ। वैसे उस इलाके में भेड़िये तो नहीं थे, लेकिन एक बार रात में एक भेड़ बाहर कही जा भटकी थी, और लड़के को अगला पूरा दिन उसको तलाशते हुए बरबाद करना पड़ा था।
उसने अपनी जैकेट से फ़र्श को बुहारा और जो पुस्तक उसने अभी-अभी पढ़कर समाप्त की थी, उसे तकिये की तरह इस्तेमाल कर लेट गया। उसने मन-ही-मन कहा कि अबसे मुझे मोटी पुस्तकें पढ़नी होंगी : वे लम्बे समय तक चलती हैं और उनके तकिये भी ज़्यादा आरामदेह होते हैं।
अभी अँधेरा ही था, जब उसकी नींद खुली, और, जब उसने ऊपर की ओर देखा, तो उसे टूटी हुई छत के पार तारे दिखायी दिए।
मुझे कुछ देर और सोते रहना चाहिए था, उसने सोचा। उसने रात में वही सपना एक बार फिर देखा था, जो एक हफ़्ते पहले देखा था, और एक बार फिर वही हुआ था कि सपना पूरा होने के पहले ही उसकी नीद खुल गयी थी।
वह उठा, और अपनी लाठी लेकर उन भेड़ों को जगाने लगा, जो अभी भी सोयी हुई थी। उसने देखा था कि उसके जागते ही उसके ज़्यादातर जानवर भी हिलने-डुलने लगे थे। मानो कोई रहस्यमयी शक्ति थी, जिसने उसके जीवन को उन भेड़ों के जीवन से बाँध रखा था, जिनके साथ वह पिछले दो वर्ष गुज़ार चुका था, और भोजन-पानी की तलाश में उनको इस गाँव से उस गाँव तक तक ले जाता रहा था। "उनको मेरी इस क़दर आदत पड़ चुकी है कि अब वे समझने लगी हैं कि मैं कब क्या करता हूँ,” वह बुदबुदाया। इस बारे में कुछ पल सोचने के बाद उसे लगा कि बात इसके उलट भी हो सकती है कि वह खुद ही उनकी दिनचर्या का आदी हो गया हो।
लेकिन उनमें से कुछ भेड़ें ऐसी भी थी, जिन्होंने जागने में थोड़ा ज़्यादा वक़्त लिया। उसने एक-एक कर उनको अपनी लाठी से कोंचते हुए उनका नाम लेकर पुकारा। उसका हमेशा से यह विश्वास रहा था कि वह जो कुछ भी कहता है, भेड़ें उसे समझ लेती हैं। इसीलिए ऐसे वक़्त भी आते रहे थे जब किसी पुस्तक को पढ़ते हुए उसे उसके जो हिस्से बहुत प्रभावित करते थे, वे...
उसने वहीं पर रात बिताने का फैसला किया। उसने टूटे दरवाज़े से सारी भेड़ों को अन्दर किया, और उसके बाद वहाँ लकड़ी के कुछ लड्डों से एक बाड़ तैयार कर दी ताकि रात में भेड़ें बाहर निकलकर यहाँ-वहाँ न भटकने पाएँ। वैसे उस इलाके में भेड़िये तो नहीं थे, लेकिन एक बार रात में एक भेड़ बाहर कही जा भटकी थी, और लड़के को अगला पूरा दिन उसको तलाशते हुए बरबाद करना पड़ा था।
उसने अपनी जैकेट से फ़र्श को बुहारा और जो पुस्तक उसने अभी-अभी पढ़कर समाप्त की थी, उसे तकिये की तरह इस्तेमाल कर लेट गया। उसने मन-ही-मन कहा कि अबसे मुझे मोटी पुस्तकें पढ़नी होंगी : वे लम्बे समय तक चलती हैं और उनके तकिये भी ज़्यादा आरामदेह होते हैं।
अभी अँधेरा ही था, जब उसकी नींद खुली, और, जब उसने ऊपर की ओर देखा, तो उसे टूटी हुई छत के पार तारे दिखायी दिए।
मुझे कुछ देर और सोते रहना चाहिए था, उसने सोचा। उसने रात में वही सपना एक बार फिर देखा था, जो एक हफ़्ते पहले देखा था, और एक बार फिर वही हुआ था कि सपना पूरा होने के पहले ही उसकी नीद खुल गयी थी।
वह उठा, और अपनी लाठी लेकर उन भेड़ों को जगाने लगा, जो अभी भी सोयी हुई थी। उसने देखा था कि उसके जागते ही उसके ज़्यादातर जानवर भी हिलने-डुलने लगे थे। मानो कोई रहस्यमयी शक्ति थी, जिसने उसके जीवन को उन भेड़ों के जीवन से बाँध रखा था, जिनके साथ वह पिछले दो वर्ष गुज़ार चुका था, और भोजन-पानी की तलाश में उनको इस गाँव से उस गाँव तक तक ले जाता रहा था। "उनको मेरी इस क़दर आदत पड़ चुकी है कि अब वे समझने लगी हैं कि मैं कब क्या करता हूँ,” वह बुदबुदाया। इस बारे में कुछ पल सोचने के बाद उसे लगा कि बात इसके उलट भी हो सकती है कि वह खुद ही उनकी दिनचर्या का आदी हो गया हो।
लेकिन उनमें से कुछ भेड़ें ऐसी भी थी, जिन्होंने जागने में थोड़ा ज़्यादा वक़्त लिया। उसने एक-एक कर उनको अपनी लाठी से कोंचते हुए उनका नाम लेकर पुकारा। उसका हमेशा से यह विश्वास रहा था कि वह जो कुछ भी कहता है, भेड़ें उसे समझ लेती हैं। इसीलिए ऐसे वक़्त भी आते रहे थे जब किसी पुस्तक को पढ़ते हुए उसे उसके जो हिस्से बहुत प्रभावित करते थे, वे...