परिवर्तन
परिवर्तन
सकारात्मक परिवर्तन हमारी जिंदगी को और भी खूबसूरत बना देता है।अगर हम जिंदगी को बदलने की कोशिश ही नहीं करेंगे तो हम जैसे हैं वैसे ही बने रहेंगे।
हम कुछ भी नया नहीं सीख पाएंगे।अगर हम छोटे-छोटे कामों को सीखने की कोशिश करें तो हम जिंदगी में बहुत आगे जा सकते हैं परंतु बहुत कम लोग ऐसा कर पाते हैं । आजकल की जनरेशन तो कुछ व्यवहारिक सीखना ही नहीं चाहती।अगर मैं अपनी बात करूं तो मैंने अपनी जिंदगी में बहुत सारे पड़ाव देखें पर कभी निराश नहीं हुई। बचपन में मां पिता और भाइयों की निगरानी में पली बढ़ी।अनेक सामाजिक बन्धनो से हो कर गुजरी।
मैंने कालेज से समाजशास्त्र एवं राजनीति विषय से बी० ए० किया।
शादी के बाद समाजशास्त्र से एम० ए० किया। एक नए परिवार में आई फिर बच्चे हुए उनकी परवरिश अच्छे से की।आज मेरे दोनों बच्चे जॉब में और मैरिड हैं। प्रत्येक अवस्था में अलग अलग जिम्मेदारियां बढ़ती गई। अपने आप को बदलते हुए विभिन्न परिस्थितियों का सामना करते हुए शादी को भी 40 साल हो गए और उम्र के 60 साल पूरे किए।
लेकिन आज भी अपने आप को बदलते हुए बहुत आगे निकल गई हूं कुछ लोग मेरी सफलता को देखकर चिढ़ते भी हैं कुछ किस्मत का कमाल कहते हैं उन्हें क्या मालूम जिंदगी में सकारात्मक आवश्यक परिवर्तन या अपने आप को बदलकर खुशियां खरीदनी पड़ती हैं। हर खुशी कीमत चाहती है।
जिंदगी में अपने आप को बदलना बहुत मुश्किल काम है जो सबके बस की बात नहीं है मां पिता के घर जो काम कभी नहीं किया वह काम ससुराल में आकर सीख कर करना पड़े।मैं और मेरा परिवार गांव से जुड़ा नहीं था फिर भी जिस माहौल में डाली उसी माहौल में ढल गई। मुझे मक्का की रोटी सरसों का साग बनाना नहीं आता था यह सब सीखा। मुझे बनाना नहीं आता था तो फिर भी मैंने सीखने की कोशिश की क्योंकि मेरे घर यह सब नहीं बनता था मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि आजकल की जनरेशन जो है वह यह सब नहीं करना चाहती। सोशल मीडिया का जमाना है पहले तो फोन भी नहीं हुआ करते थे आजकल तो सभी कुछ फोन से हो जाता है घर में बैठे-बैठे ही बना बनाया खाना आ जाता है। जोमैटो सुविगी से हम कुछ भी मंगा सकते हैं यहां तक की चाय तक ऑनलाइन आ जाती है । कोई मेहमान आ जाए तो खाना बाहर से आ जाता है हमारे जमाने में मैंने कभी भी बाहर का खाना खाया ही नहीं।आजकल लोग खुद को बदलना नहीं चाहते बहुत से परिवार इसलिए ही टूट रहे हैं। उन्हें एक दूसरे की बात सुनना ही पसंद नहीं है अगर हर इंसान अपने आप में कुछ परिवर्तन लाकर अपने को बदलने की कोशिश करे तो बहुत से परिवार टूटने से बच सकते हैं। जिस परिवार में अपनापन और एक दूसरे के प्रति प्यार और सम्मान होगा उस परिवार को दुनिया कि कोई ताकत जुदा कर ही नहीं सकती। बस थोड़ी सी समझ और सहनशीलता की जरूरत होती है एक दूसरे को समझने की जरूरत होती है। हम अपने अंदर आवश्यक परिवर्तन लाकर बहुत सारी खुशियां पा सकते हैं। खुद भी खुश रह सकते हैं और परिवार को भी खुश रख सकते हैं । ऐसे ही मेरे मन में यह विचार आया और लिख दिया मैं कोई लेखिका नहीं हूं थोड़ा बहुत सब लोगों से सीख कर लिखने लगी हूं मैं कोई भी घटना या कोई भी खूबसूरत जगह पशु पक्षी प्राकृतिक दृश्य देखती हूं या खूबसूरत लम्हें मेरे मन में विचार आते हैं कि मैं कुछ लिखने की कोशिश करती हूं बस ऐसे ही ------
मिथलेश चांवरिया
सकारात्मक परिवर्तन हमारी जिंदगी को और भी खूबसूरत बना देता है।अगर हम जिंदगी को बदलने की कोशिश ही नहीं करेंगे तो हम जैसे हैं वैसे ही बने रहेंगे।
हम कुछ भी नया नहीं सीख पाएंगे।अगर हम छोटे-छोटे कामों को सीखने की कोशिश करें तो हम जिंदगी में बहुत आगे जा सकते हैं परंतु बहुत कम लोग ऐसा कर पाते हैं । आजकल की जनरेशन तो कुछ व्यवहारिक सीखना ही नहीं चाहती।अगर मैं अपनी बात करूं तो मैंने अपनी जिंदगी में बहुत सारे पड़ाव देखें पर कभी निराश नहीं हुई। बचपन में मां पिता और भाइयों की निगरानी में पली बढ़ी।अनेक सामाजिक बन्धनो से हो कर गुजरी।
मैंने कालेज से समाजशास्त्र एवं राजनीति विषय से बी० ए० किया।
शादी के बाद समाजशास्त्र से एम० ए० किया। एक नए परिवार में आई फिर बच्चे हुए उनकी परवरिश अच्छे से की।आज मेरे दोनों बच्चे जॉब में और मैरिड हैं। प्रत्येक अवस्था में अलग अलग जिम्मेदारियां बढ़ती गई। अपने आप को बदलते हुए विभिन्न परिस्थितियों का सामना करते हुए शादी को भी 40 साल हो गए और उम्र के 60 साल पूरे किए।
लेकिन आज भी अपने आप को बदलते हुए बहुत आगे निकल गई हूं कुछ लोग मेरी सफलता को देखकर चिढ़ते भी हैं कुछ किस्मत का कमाल कहते हैं उन्हें क्या मालूम जिंदगी में सकारात्मक आवश्यक परिवर्तन या अपने आप को बदलकर खुशियां खरीदनी पड़ती हैं। हर खुशी कीमत चाहती है।
जिंदगी में अपने आप को बदलना बहुत मुश्किल काम है जो सबके बस की बात नहीं है मां पिता के घर जो काम कभी नहीं किया वह काम ससुराल में आकर सीख कर करना पड़े।मैं और मेरा परिवार गांव से जुड़ा नहीं था फिर भी जिस माहौल में डाली उसी माहौल में ढल गई। मुझे मक्का की रोटी सरसों का साग बनाना नहीं आता था यह सब सीखा। मुझे बनाना नहीं आता था तो फिर भी मैंने सीखने की कोशिश की क्योंकि मेरे घर यह सब नहीं बनता था मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि आजकल की जनरेशन जो है वह यह सब नहीं करना चाहती। सोशल मीडिया का जमाना है पहले तो फोन भी नहीं हुआ करते थे आजकल तो सभी कुछ फोन से हो जाता है घर में बैठे-बैठे ही बना बनाया खाना आ जाता है। जोमैटो सुविगी से हम कुछ भी मंगा सकते हैं यहां तक की चाय तक ऑनलाइन आ जाती है । कोई मेहमान आ जाए तो खाना बाहर से आ जाता है हमारे जमाने में मैंने कभी भी बाहर का खाना खाया ही नहीं।आजकल लोग खुद को बदलना नहीं चाहते बहुत से परिवार इसलिए ही टूट रहे हैं। उन्हें एक दूसरे की बात सुनना ही पसंद नहीं है अगर हर इंसान अपने आप में कुछ परिवर्तन लाकर अपने को बदलने की कोशिश करे तो बहुत से परिवार टूटने से बच सकते हैं। जिस परिवार में अपनापन और एक दूसरे के प्रति प्यार और सम्मान होगा उस परिवार को दुनिया कि कोई ताकत जुदा कर ही नहीं सकती। बस थोड़ी सी समझ और सहनशीलता की जरूरत होती है एक दूसरे को समझने की जरूरत होती है। हम अपने अंदर आवश्यक परिवर्तन लाकर बहुत सारी खुशियां पा सकते हैं। खुद भी खुश रह सकते हैं और परिवार को भी खुश रख सकते हैं । ऐसे ही मेरे मन में यह विचार आया और लिख दिया मैं कोई लेखिका नहीं हूं थोड़ा बहुत सब लोगों से सीख कर लिखने लगी हूं मैं कोई भी घटना या कोई भी खूबसूरत जगह पशु पक्षी प्राकृतिक दृश्य देखती हूं या खूबसूरत लम्हें मेरे मन में विचार आते हैं कि मैं कुछ लिखने की कोशिश करती हूं बस ऐसे ही ------
मिथलेश चांवरिया