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तुम्हें और तुम्हारे अहसास को लिखना है
तुम्हें लिखना है मुझे अपने अल्फ़ाज़ों में आज
क्या लिखना है ये मैं नहीं जानती
क्या नहीं लिखना ये भी मालूम नहीं
बस मालूम है तो इतना की तुम्हें लिखना
सोचा तो था कि लिखूँगी लेकिन अब समझ नहीं आ रहा क्या लिखूँ
तुम्हारा वो प्यार लिखूँ जो झलकता है तुम्हारी बातों से
जो महसूस कराता है मुझे एक अलग अहसास जिससे मैं समझने लगती हूँ खुद को कीमती

तुम्हारी वो फ़िक्र लिखूँ जो तुम्हारी हर बात में दिखती है
जैसे तुम बाँट लेना चाहते हो मेरा दर्द को मेरी तकलीफ को तुम्हारा छोटी छोटी बातों पर मेरी फ़िक्र करना जैसे तुम मुझे कभी दर्द में नहीं देखना चाहते मेरी तकलीफ तुम्हें भी परेशान कर देती है तुम्हारे माथे पर भी शिकन से भरी लकीरें उभर आती है जब तुम्हें मालूम होता है कि में किसी परेशानी में हूँ वैसे मुझे सुकून देती है तुम्हारी फ़िक्र

या तो तुम्हारा वो अपनापन लिखूँ जो तुम्हारे नाराज होने पर भी महसूस होता है मुझे तुम्हारी हँसी पर तुम्हारी ख़ुशी पर हर बात पर अपनापन दिखता है जैसे हो हमारा कोई गहरा रिश्ता

या फिर वो हक़ लिखूँ जो जताते हो तुम और कहते हो मुझसे कि मुझे हर चीज का हक है जब कि ये तुम भी जानते हो कि हम बंधे नहीं किसी भी बन्धन में
मेरा तुम पर कोई हक नहीं कोई अधिकार नहीं फिर भी सौंप देते हो खुद को मुझे....जैसे नदी सौंप देती है खुद को सागर की लहरों में


या तुम्हारे अंदर के डर को लिखूँ जो डर तुम्हारे मन में
है हो सकता है तुम नहीं डरते होंगें ये मेरे मन का वहम भी हो सकता है लेकिन मुझे महसूस होता है तुम्हारी बातों से कि तुम डरते हो कई दफा अपने आने वाले कल में मेरी मौजूदगी न होने से तुम डरते हो मेरे न होने से अपनी ज़िन्दगी के अधूरेपन से

मैं तुम्हारी ज़िन्दगी का एक छोटा सा हिस्सा हूँ लेकिन फिर भी मुझे बहुत कुछ मिल गया एक तुम्हारे होने से
तुमसे मैं अपनी हर बात कर सकती हूँ तुमसे लड़ सकती हूँ नाराज हो सकती हूँ और कभी कभी हक से डाँट भी सकती हूँ

तुम हमेशा से हिस्सा बने रहे मेरी जिंदगी का फिर भी लगता है जैसे समझ नहीं पाई हूँ मैं तुम्हें अभी तक
क्योंकि तुम्हारे अंदर छुपी हैं कई ऐसी बातें जो शब्दों से परे है या फिर मैं समझ ही नहीं पाई हूँ तुम्हें
तुम्हारी उदासी,तुम्हारा दर्द तुम्हारा अकेलापन,तुम्हारी जरूरतें महसूस होती है लेकिन फिर भी मैं नहीं कर सकती कम तुम्हारी मन की पीड़ा को
मैं नहीं कर सकती कोई वादा इस जनम का
मैं नहीं खा सकती कोई क़सम साथ जीने मरने की
मैं नहीं बंध सकती तुम्हारे साथ किसी भी बन्धन में
मैं नहीं निभा सकती कोई रिश्ता तुम्हारे साथ