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चुनावी रण !
#वोट
चाय की टपरी में आज काफी गहमा गहमी है। बनवारी लाल हाथ में अख़बार लिए पढ़ रहे और हर एक ख़बर पर चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा हो रही। जैसे चुनाव के दल वैसे ही चाय की दुकान भी दो हिस्सों में विभाजित हो गई थी। एक हिस्सा उस उस दल का समर्थन करता जो सत्ता में है, दूसरा हिस्सा उस दल का जो सत्ता में नहीं है ।
चुनावी रण का एक अजीब सा चेहरा जो सिर्फ भारत में नहीं बल्कि वो सभी राष्ट्रो में है, जिनमें आधुनिक काल का अजीब सा शब्द प्रयोग होता है, "लोकतंत्र" जो एक मनमोहक शब्द है , जिसके बारे मे पता किसी को नहीं ,परन्तु लगता सब को अच्छा है । "प्रजातंत्र" क्या सुन्दर शब्द है , मानो मैं की आज के युग का राजा हू , यह कितना मनमोहक लगता हैं, लेकिन असलियत में कुछ और ही हैं ।
आमआदमी के लिए कुछ भी नही है, प्रजातंत्र में,और ये सच हैं।
मैं अगर कहू "लोकतंत्र" एक अंतहीन अंत हैं , तो आप को इसमें आश्चर्यचकित होने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकी ये सच हैं।।
© ashwani kumar