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आग-ए-अलतुआ
आग-ए-अलतुआ

लफवाजियों में आजकल वो दम नहीं रहा जो कभी हमारे दौर में हुआ करता था उसमे भी हर बात कायदे की हुआ करती थी भले किसी की टांग खींचने का मसला हो या फिर किसी कमसिन की ज़वानी की चर्चा हो जो भी था एक हद के दरमियाँ हुआ करता था.. लेकिन आज वो अड्डे और चोगड्डों ने हाथ के अलतुए ने इस दौर में आ के उन्हें वीराना कर दिया कभी वो भी दौर था जो लफवाजियों में काफी रात गुज़र जाया करती थी शाम होते ही चोगड्डों के अड्डे रौनक मंद हो जाया करते थे आज तो बस सिर्फ यादें भर रह गई.. और मोहल्लों के चोगड्डों की रोनके खो गई..कभी आग भी अगर किसी के चूल्हे में भभक जाए तो मोहल्ले के हर इंसा को पता चल जया करती...