...

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मृत मैं।
छोड़ कर अपने देह को चला में मंजिल की ओर। एक आखरी बार चार कंधो पर बोझ बना। यू तो कुछ इस तरह मेरी डोली निकली, परिवार की आंखो मे आंसु और मां फुट फुट कर रोती है। पड़ोसियों का क्या है? जब जिंदा था तब भी भला न सोचा, अब झुटी फिकर जाता रहे है। खेर, काफी राहत मिली, जिमेदारियो और मुस्कीलो से। इस शरीर को आखिरी बार दर्द दे दो फिर तो यह राख ही बन जायेगी। मैं तो बहुत पहले ही छोड़ गया था इसे। मैं देख पा रहा हु घर की हालत। माला चढ़ी मेरी तस्वीर पर, रिश्तेदार आए फर्ज निभाने, पर मेरी मां का क्या?। वो तो कोने में कफस रही है। कोई आए तो तुरंत आंसु पोंछ लेती है। आग में जलते हुवे मुझे तो अपनो ने ही छोड़ा था, पर क्या शिकायत करू? जब जिंदा था तभी ही आधा मर चुका था। नहीं पता मुझे की मेने कितने अच्छे काम किए है की स्वर्ग मिल जाए या हो सकता है पाप का मेरा घड़ा भर गया हो! खेर तो अभी यू ही घूमना चाहता हु दुनिया। देखू तो सही क्या क्या तरक्की हुई है। अब तो में शायद अगले जन्म में ही मिलु पर याद तो मुझे कुछ नहीं रहेगा।