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विवाह का घर
"अरशद साहब हमें कुछ नहीं चाहिए है. हमें बेटी चाहिए थी जो अल्लाह के करम से बहुत अच्छी मिल गयी है."
"यासीन बेटे सुनो लड़की वालों की तरफ से जो पिनहाई आनी है उसे सिर्फ़ रस्म के लिये ही बनाना बहुत मुख्तसिर
पिनहाई ही भेजें." यावर साहब ने अपने भतीजे से कहा

"अच्छा अरशद साहब अब हमें आप इजाज़त दीजिए. इंशाअल्लाह जल्दी ही बारात वाले रोज़ मुलाकात होगी. "

" ज़रूर भाई साहब  हम भी आपका क़ीमती वक़्त ज़्यादा नहीं लेंगे.. अब हम दोनों को ही शादी की तैयारियाँ जो करनी है. "
" सही फरमाया है आपने.. ख़ुदा हाफ़िज़
" अजरा, नूरी कहाँ हो भाई सबके सब.. बेटे की शादी की तरीख रख आएँ है.. बहुत बहुत मुबारक हो." यावर साहब
ने घर में दाखिल होते हुए अपनी अहलिया अजरा और अपनी भाभी नूरी को पुकारते हुए बताया

यावर साहब दो भाई एक बहन थे. सबसे बड़े यावर साहब
छोटे भाई अलीमुद्दीन और सबसे छोटी बहन सीमा.
अलीमुद्दीन का चार साल पहले कैंसर की वजह से इंतकाल हो गया था.. मरते समय अपने दोनों बच्चों यासीन और हूरा का हाथ यावर साहब के हाथों में दे गये थे.

तब आजतक यावर साहब ने उनके बच्चों को अपने सगे बच्चों से कम नहीं समझा था. अजरा बेगम भी उन बच्चों से अपने बच्चों जैसी ही मोहब्बत करती थी. यावर साहब के खुद भी दो बेटियाँ थी जिनकी अच्छे परिवारों में अल्लाह के करम से शादियाँ हो गयीं थी और दोनों ही अपनी घर गृहस्थी में ख़ुश थी.

हूरा की शादी दो साल पहले हुई थी. यावर साहब ने उसकी शादी में कोई कमी नहीं छोड़ी. अल्लाह के करम से उसका घर और ससुराल वाले भी बहुत अच्छे थे.

यावर साहब अपने भतीजे यासीन को सेट करने के बाद उसकी शादी कर देना चाहते थे जिससे वक़्त से अपना फर्ज पूरा कर दे.

यावर साहब की बहन सीमा अपने ससुराल में बहुत खुश थी. उनके भी दो बच्चे थे.भाई बहन में बहुत प्यार मोहब्बत थी.. कभी कभी नूरी और हूरा की वजह से  कुछ मसले हो जाते थे लेकिन सभी उनको अपने भाई अलीमुद्दीन की बेवा औरहूरा को यतीम बच्ची जानकर सभी गलतियाँ नजरअंदाज कर देते थे.

लेकिन इससे पहले कि कोई भी गलतफहमी सिर चढ़कर बोले वक़्त रहते ही छोटे छोटे मसलों को सुलझा चाहिये. पर शायद यावर साहब और सीमा यहाँ चूक गये थे.

हालाँकि अजरा बेगम दोनों को नूरी की हरकतों के बारे में आगाह करती रही लेकिन दोनों ने इसे जेठानी और देवरानी की नोंक झोंक ही समझा.जबकि वो दोनों ही जानते थे कि अजरा बेगम बहुत समझदार, शरीफ खातून हैं. पर शायद अलीमुद्दीन की वजह से वो घर में कोई झगड़ा
नहीं चाहते थे.

आज यासीन की शादी की तारीखें रखकर यावर साहब बहुत सुकून में थे कि अब वो अपने इस फ़र्ज़ से भी बरी हो जाएँगे.
लेकिन वक़्त को शायद कुछ और ही मंजूर.उनके पीठ पीछे एक साज़िश अपने पैर फैल चुकी थी.

"हूरा, तेरा अक्लमंद ताया लड़की वालों से कह आया उसे कुछ नहीं चाहिए.भला ये कौन होता है ये फैसला करने वाला.. और तेरा भाई...