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दोष युक्त इंसान
सबने मुझमें बस कमियां ही देखी हैं, मेरी खूबियां कभी किसी को नहीं दिखीं। ऐसा नहीं है कि मैं पूरी तरह से बेकार हूँ। मेरे अंदर कमियां हैं, पर ये कमियां ही इस बात का प्रमाण हैं कि मैं इंसान हूँ। अगर कोई यह कहे कि वह पूरी तरह से दोषरहित है, तो समझ लीजिए कि वह खुद को नहीं जानता और अहंकार उसके दिमाग पर हावी हो गया है। आत्ममुग्धता के कारण वह अपनी कमियों को देख नहीं पा रहा है।

दरअसल, कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका जन्म ही दूसरों की कमियां निकालने के लिए हुआ लगता है। कमियां ढूंढना उनका शौक बन जाता है। जो सच में आपके जीवन में आपकी सफलता चाहते हैं, वे आपकी अच्छाइयों और कमियों दोनों पर बात करेंगे—चाहे प्रत्यक्ष रूप से या परोक्ष रूप से, लेकिन वे चर्चा ज़रूर करेंगे। वहीं, जो लोग केवल दूसरों में दोष निकालने में माहिर होते हैं, उन्हें आपकी खूबियों से कोई लेना-देना नहीं होता।

जैसे भीड़ में हजारों लोग हों, और आपको किसी एक विशेष व्यक्ति को ढूंढना हो, तो आपकी नजरें बस उसी एक व्यक्ति को ढूंढती रहेंगी। बाकी लोग आपके लिए कोई मायने नहीं रखते। दोष निकालने वाला भी ऐसा ही होता है। चाहे आपके अंदर कितनी ही अच्छाइयां हों, उसे बस आपकी कमियां ही दिखेंगी। और जब आप उससे पूछेंगे कि क्या मेरे अंदर कुछ अच्छाइयां भी हैं, तो वह बताएगा जरूर, पर उसकी बताई अच्छाइयां आपके असल गुणों से मेल नहीं खाएंगी। इसका कारण यह है कि उसने कभी आपकी अच्छाइयों को देखने की कोशिश ही नहीं की होती, तो वह आपकी सच्ची तारीफ कैसे कर पाएगा?

मुझे लगता है कि हमें कबीरदास जी की बात मान लेनी चाहिए, जब उन्होंने कहा था, "निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।" अगर मेरी मानें तो हमें एक कदम और आगे बढ़कर उन लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सिर्फ हमारी कमियां निकालते हैं। उन्हें ऐसा करने के लिए और प्रेरित करें, ताकि उनका ध्यान पूरी तरह दूसरों पर केंद्रित हो जाए और वे अपनी ही कमियों को भूल जाएं।

फिर एक दिन ऐसा आएगा जब आप खुद को सुधार लेंगे, लेकिन वह इंसान जीवनभर केवल दूसरों की गलतियां निकालता रह जाएगा। उसका मानसिक विकास थम जाएगा, या यदि कोई विकास होगा भी, तो वह केवल एक दिशा में—दोष ढूंढने की दिशा में।

हमें उनकी बताई कुछ कमियों पर सुधार करना चाहिए, लेकिन जो कमियां ईर्ष्या या द्वेष से निकलती हैं, उन्हें सुनकर हंसकर टाल देना चाहिए। मुझे लगता है कि इंसान को कुछ कमियों के साथ जीना सीख लेना चाहिए, खासकर वे कमियां जो लाख कोशिशों के बाद भी दूर नहीं होतीं। क्योंकि इंसान कितना भी कोशिश कर ले, वह ईश्वर नहीं बन सकता। कुछ दोष तो आखिरी सांस तक रहेंगे ही।
© प्यारे जी