समय की मार
एक समय की बात है
एक परिवार बहुत ही सुशील, संपन्न और इज़्जत के साथ जीवन व्यापन कर रहा था। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। परिवार के मुखिया चंद्रभान जी की गांव में काफ़ी इज़्ज़त और ओहदा था,लोग उनकी कर्मठता और शालीनता की मिसाल दिया करते थे और परिवार की तारीफ के पुल बांधा करते थे।
चंद्रभान जी की औलाद, एक सुपुत्र और एक सुपुत्री, जो कि अपने पिता के हर आज्ञा का पालन किया करते थे, और माता पिता भी अपने बच्चों को लेकर गर्व महसूस करते थे। पर वो कहते हैं ना कि कालचक्र किसी को भी नहीं बक्खता।
और फिर शुरू होता है चंद्रभान और उसके परिवार के पतन की कहानी।
एक दिन चंद्रभान की फैक्ट्री में आग लग गई, करोड़ों का माल जल कर स्वाहा हो गया। इतनी बड़ी आपदा चंद्रभान जी झेल नहीं पाए और उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जैसे तैसे उन्हें अस्पताल ले जाया गया, इलाज भी किया गया पर डाक्टरों ने उनकी पत्नी को समझाया कि उनकी हालत काफ़ी गंभीर है, उन्हें कुछ समय के लिए अस्पताल में भर्ती रहना पड़ेगा। इतना सुनते ही सुशीला,जो कि चंद्रभान जी की धर्मपत्नी थी, फूट फूटकर रोने लगी।
ये तो था नीयती का पहला वार।
कुछ दिनों बाद चंद्रभान जी को अस्पताल से घर लाया गया,पर डाक्टरों ने सुशीला और बच्चों को चेताया कि गर दोबारा चंद्रभान जी को दिल का दौरा पड़ा तो उनकी ज़िंदगी ख़तरे में पड़ सकती है।
बच्चों की मदद और गांव वालों के अच्छे स्वभाव के चलते चंद्रभान जी अब धीरे धीरे स्वस्थ होने लगे,पर उनके परिवार जन इस बात का हमेशा ख्याल रखते थे कि उन्हें किसी भी तरह की कोई चिंता या परेशानी न सताए।
अब इस कहानी के दूसरे अध्याय में मिलेंगे और देखेंगे कि क्या अब सब कुछ ठीक हो चुका था या फिर इस शांति के पीछे किसी बड़े तूफ़ान के आगमन का राज़ छुपा हुआ है।
मिलते हैं अगले कड़ी में।
कहानी का आनंद लीजिए और अपने विचार साझा करिए।
सदैव आभारी रहूंगी
धन्यवाद 🙏
© Aphrodite
एक परिवार बहुत ही सुशील, संपन्न और इज़्जत के साथ जीवन व्यापन कर रहा था। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। परिवार के मुखिया चंद्रभान जी की गांव में काफ़ी इज़्ज़त और ओहदा था,लोग उनकी कर्मठता और शालीनता की मिसाल दिया करते थे और परिवार की तारीफ के पुल बांधा करते थे।
चंद्रभान जी की औलाद, एक सुपुत्र और एक सुपुत्री, जो कि अपने पिता के हर आज्ञा का पालन किया करते थे, और माता पिता भी अपने बच्चों को लेकर गर्व महसूस करते थे। पर वो कहते हैं ना कि कालचक्र किसी को भी नहीं बक्खता।
और फिर शुरू होता है चंद्रभान और उसके परिवार के पतन की कहानी।
एक दिन चंद्रभान की फैक्ट्री में आग लग गई, करोड़ों का माल जल कर स्वाहा हो गया। इतनी बड़ी आपदा चंद्रभान जी झेल नहीं पाए और उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जैसे तैसे उन्हें अस्पताल ले जाया गया, इलाज भी किया गया पर डाक्टरों ने उनकी पत्नी को समझाया कि उनकी हालत काफ़ी गंभीर है, उन्हें कुछ समय के लिए अस्पताल में भर्ती रहना पड़ेगा। इतना सुनते ही सुशीला,जो कि चंद्रभान जी की धर्मपत्नी थी, फूट फूटकर रोने लगी।
ये तो था नीयती का पहला वार।
कुछ दिनों बाद चंद्रभान जी को अस्पताल से घर लाया गया,पर डाक्टरों ने सुशीला और बच्चों को चेताया कि गर दोबारा चंद्रभान जी को दिल का दौरा पड़ा तो उनकी ज़िंदगी ख़तरे में पड़ सकती है।
बच्चों की मदद और गांव वालों के अच्छे स्वभाव के चलते चंद्रभान जी अब धीरे धीरे स्वस्थ होने लगे,पर उनके परिवार जन इस बात का हमेशा ख्याल रखते थे कि उन्हें किसी भी तरह की कोई चिंता या परेशानी न सताए।
अब इस कहानी के दूसरे अध्याय में मिलेंगे और देखेंगे कि क्या अब सब कुछ ठीक हो चुका था या फिर इस शांति के पीछे किसी बड़े तूफ़ान के आगमन का राज़ छुपा हुआ है।
मिलते हैं अगले कड़ी में।
कहानी का आनंद लीजिए और अपने विचार साझा करिए।
सदैव आभारी रहूंगी
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