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आइए, धन्यवाद करें, शुक्राने में रहें!
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क्या सब कुछ यूं ही, बेवजह हो रहा है?! सांसें चल रही हैं, हवा बह रही है, नदी में रवानी है, ग्रह नक्षत्र गतिमान हैं।हम आप चल फिर रहे हैं, सोच समझ रहे हैं, बातें कर रहे हैं। हज़ारों कीड़े मकौड़े पत्थरों के नीचे, खेत खलिहानों में पल-बढ़ रहें हैं।अनेकों अनेक जीव- जंतु, वनस्पतियां उपज रही हैं।

वैज्ञानिक शक्तिशाली दूरबीनों से पता लगा रहे हैं कि एक ब्रह्मांड नहीं हैं, multiverses हैं।यह जानकारी भी उतनी ही है, जितना वो टेलीस्कोप देख सकती है।उसके परे क्या है, अज्ञात है किंतु सोचा जाए तो अद्भुत और अनुपम है। अजब पसारा है, निर्विकार, निराकार विराट का! एक छोटा सा सूखा बीज एक विशाल वृक्ष में बदल जाता है और सदियों तक टिका रहता है। कहां से आती है इतनी ऊर्जा?!

अगर आप जानते हैं तो कोई प्रश्न नहीं करूंगा।आपको मुबारक। और अगर नहीं जानते तो कोई बात नहीं क्योंकि उस एक का पसारा तो बड़े बड़े संत , ज्ञानी, वैज्ञानिक न समझ पाए तो हमारी क्या बिसात?!

तो फिर action कया बनता है? सिर्फ़ और सिर्फ़ धन्यवाद, शुक्राना, आभार!

किसका?! अरे,उस महान् इष्ट का, ईश्वर का, ख़ुदा का, God का जिसने यह सृष्टि बनाई। अनीश्वरवादी हैं तो भी धन्यवाद करें प्रकृति मां का।

खुश रहें, धन्यवादी रहें। चीज़ें हैं तो ठीक, नहीं हैं तो भी ठीक। सनद रहे— हमारी सांसें यूं ही नहीं चलती!🙌🙌

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—Vijay Kumar
© Truly Chambyal
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