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"पिता"
एक इंसान जिसने कभी अपने बारे में न सोचा। जिसके लिए अपने सूख के अलावा सब का सूख महतवपूर्ण है। जो हमेशा अपनी इच्छाओं का त्याग कर अपनों के अरमानों को पूरा करता है। ना बहू के ऊपर शासन करने की लालसा,ना किसी को प्रताड़ित करने की कामना। हृदय में भावनाओं का समंदर दबाकर अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए सदैव जुबां से कठोरता का भाव रखने वाला। नाडियाल की तरह बाहर से कठोर परंतु अंदर से कोमल। विकट से विकट परिस्थितियों में भी न डगमगाने वाला। ना कभी किसी शायर की शायरी में न किसी कवि की कविता में स्थान पाने वाले इस इंसान को भगवान का रूप कहें तो अतिशयोक्ति नही होगी। अपनी जिंदगी की जमा पूँजी को अंतिम सांस तक संजो के रखने वाला। अपने जीतेजी अपने बच्चों एवं परिवार के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अपना वर्तमान और भविष्य दोनों की परवाह ना करने वाला इंसान किसी ईश्वर से कम नही। अपने बच्चों को तो चलना सिखाता ही है और ये भी प्रयास करता है कि अपने बच्चे के बच्चों को भी चलना सिखाए। पूरा जीवन जिसका निर्लोभ वश अपने परिवार को समर्पित रहता है। माँ का स्थान तो खुद ईश्वर भी नही ले सकतें लेकिन पिता का स्थान तो ऐसा है जहाँ ईश्वर भी सकतें में आ जातें हैं कि अखिर इतनी मजबूत कृति हमसे कैसे और कब बनी। जब तक आप मित्र,भाई, पुत्र हैं तब तक आप परिपक्वता के मार्ग पर अग्रसर हैं परंतु जिस दिन आपने पिता का पदभार ग्रहण किया उस छण से आप अपने परिवार के सबसे सुदृढ़ एवं समर्पित व्यक्ति बन जातें हैं।

इस सृष्टि की सबसे मजबूत कृति "पिता" के चरणों में मेरा सादर प्रणाम।
(एक पिता के द्वारा अपने पिता को समर्पित छोटी सी भेंट)
©राम कुमार सिंह