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प्रामाणिकता
बृहत मुंबई महानगर,यह एक औद्योगिक, वाणिज्य तथा चलनचित्र नगरी,जिसे बालीवुड के नाम से जाना जाता है। ऐसे इस महानगर में अशोक अपने कंपनी के शिलशीले में मुंबई आया था। मुंबई में तीन दिन का काम होने के कारण, अशोक एक गोकुल नाम के एक बड़े होटल तथा विश्रामगृह में ठहरा था। समुंदर के
किनारे पर का यह बड़ा सा सुंदर होटल था। गोकुल होटल के सामने फूटपाथ पर रोज एक आदमी बूट पॉलिश करता था और उसके बगल में ही एक बुजुर्ग,अंधा था फिर भी कुछ मराठी, कन्नड़ तथा गुजराती दिनदर्शिका (Calendar) और अंग्रेजी अखबार बेचते बैठता था। रोज सुबह अशोक अपने काम के लिए कार्यालय जाते समय उस आदमी से बूट पॉलिश करवाए करता तो और अंग्रेजी अखबार खरीदता था।
एक दिन सुबह रोज तरह आज भी
बूट पॉलिश कर , बगल में बैठे अंधे बुजुर्ग के पास आकर अंग्रेजी अखबार खरीद रहा था, तब
एक बड़ा, हट्टा-कट्टा सुटबूट पहना हुआ, बड़े -बड़े मुंछेवाला साहब ,ईसी अंधे बुजुर्ग के पास आ गया।उस साहब...