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किताबों की खुशबू
आर्या एक शांत सी लड़की थी, जिसे किताबों की दुनिया में खो जाना बहुत पसंद था. हर रोज़ वो लाइब्रेरी जाती और घंटों किताबों के बीच गुम रहती. एक दिन, वहां उसकी मुलाकात राहुल से हुई. राहुल भी किताबों का दीवाना था, ख़ासकर यात्रा वृत्तांतों का.

पहली मुलाकात में ही उनकी बातचीत किताबों पर ही छिड़ गई. उन्होंने घंटों एक दूसरे को अपनी पसंदीदा किताबों के बारे में बताया, पात्रों पर चर्चा की और कहानियों के बारे में बहस की. लाइब्रेरी बंद होने का समय हो गया, तब भी उनकी बातें खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं थीं.

अगले दिन फिर वही जगह, वही समय. किताबों की वजह से उनकी मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. वो मिलते थे, किताबों के बारे में बातें करते थे, कभी-कभी एक-दूसरे को किताबें उधार भी देते थे.

धीरे-धीरे उनकी बातचीत किताबों से आगे बढ़ने लगी. उन्होंने एक-दूसरे को अपने सपनों, ख्वाहिशों और डरों के बारे में बताया. राहुल को पता चला कि आर्या एक ट्रैवल ब्लॉगर बनना चाहती थी, मगर उसे घूमने जाने में डर लगता था. वहीं, आर्या को मालूम हुआ कि राहुल एक कैफ़े खोलना चाहता था, जहाँ लोग किताबें पढ़ते हुए चाय पी सकें.

एक दिन, राहुल ने आर्या को एक खास किताब दी. किताब का शीर्षक था, "अपने डर पर विजय पाएँ." किताब पढ़कर आर्या बहुत प्रभावित हुई. उसने राहुल को धन्यवाद दिया और कहा, "शायद मुझे अपने डर पर जीत...