...

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बस जिंदगी थम जा अब
मैं अब सोना चाहता हूँ,,

मैं अब खुद को कमजोर सा पाता हूँ जबकि पहले मैं ऎसा नहीं था,
जब मैं भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाता हूँ कभी शब्द कम पड़ जाते हैं तो कभी लिखना नही चाहता जिन भावनाओं को शिद्दत से महसूस करता हूं पर कुछ कर नही पाता बस अंदर ही अंदर घुट कर रह जाता हूँ.......!
बाकी सारी दुनिया को सुझाव देने वाला जब खुद पर पड़ती है तो कैसा फील करता है, शायद इन भावनाओं को शब्द देना मेरे वश में है ही नही..
परिस्थितियों को जितना सम्भालने की कोशिश करता हूँ उतना फिसलता जा रहा हूँ ..!
ज़िंदगी का बोझ बढ़ता जा रहा है विगत कुछ दिनों से एकाकी रहने ही लगा हूँ अब और एकांत खोज रहा हूँ जहां सिर्फ मैं हूँ सुकून हो मोहमाया से परे जहां चीखकर रो सकूं चिल्ला सकूँ मैं जी भर के रोना चाहता हूँ बदन टूट रहा है मेरा अब हमेशा के लिए चैन की नींद सोना चाहता हूँ .!!

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