...

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अलविदा
धोखेबाज़, तुच्छ, निकृष्ट अपने को जाने क्या समझती है !बात नहीं करूँगा कभी भी ।
ऐसी दोस्त कभी नहीं देखी जो दोस्त को ना समझें ,बीच में ही धोखा दे दे ।ऐसे शब्द न जाने और भी क्या क्या निकुंज बड़बड़ाता ही रहा।
ग़ुस्सा चरम सीमा पर था ,शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था ।जाने अपने को क्या समझती है दूसरों की भावनाओं की तो कोई क़दर ही नहीं है और भी न जाने क्या क्या! मन ही मन कुढ़ रहा था।
क्या ऐसे भी कोई दोस्ती का अंत करता है ऐसा...