...

17 views

ये कैसी आझादी
मैं हु मंगल जी नहीं पांडेय नहीं शर्मा मेरा जन्म 1929 मैं लाहौर मैं हुआ मेरे बापू को लगा होगा ये आगे जाके देश की आज़ादी मैं अपना बलिदान देगा शायद इसलिए मेरा नाम मंगल रखा हो , मैं उतना बड़ा तो नहीं हो पाया लेकिन हर लड़ाई मैं अपना योगदान देता आ रहा था । लाहौर की गलियों मैं आंदोलन की बात हो और उसमे मंगल और सय्यद के चर्चे ना हो ऐसा कैसे होता । सय्यद मेरे तरह ही देशप्रेमी था सभी आंदोलनों मैं बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता था । ये बात है 1945 कि जब अंग्रेजो चले जाओ आंदोलन अपने चरम सीमा पै था । देश को जैसे आझादी मिलने ही वाली हो कई सालों का सपना जैसे पूरा होने को था जिन जिन लोगो ने अपनी जान देश को देदी उनका स्वप्न पूरा होने को था लेकनि इतने सरल आझादी अंग्रेज़ देदे तो कब की देदी होती ! उसी समय जिन्हा ने मुस्लिमो के लिए अलग देश की मांग की यकायक भारत की एकता मानो टूट गयी अभी भी एक मुस्लिम गट partion के खिलाफ था लेकिन वो चंद लोक कुछ नहीं कर पाए । एक रात मैं एक लकीर खींच दी और भारत माँ दो हिस्सों मैं बट गयी लकीर के एक और मुस्लिम और दूसरी और हिन्दू जो हिन्दू पहले से हिंदुस्तान मैं थे उनको इतना दर्द नहीं हुआ होगा जितना पाकिस्तान वाले हिन्दू को हुआ उसका कारन भी उतना ही दर्द देंने वाला था। घर मैं हम आगे कैसे करे इस विषय मैं चर्चा कर ही रहे थे तभी कोई जोरजोर से दरवाजा बजाने लगा बापू ने डरते डरते दरवाजा खोला तो दरवाजे पे सय्यद था उसने बताया मुस्लिमो का एक गुट सारे हिन्दू को मार रहा है और वो इसी और आ रहा है जल्दी से जल्दी यहाँ से भाग जाओ, इतने सालो की मेहनत से कमाई हुई सारी चीज़ें कैसे २० मिनिट मैं समेटना मुश्किल था उस वक़्त सिर्फ अपनी जान बचाने की लड़ाई थी । गलियों के सभी लोगो ने हिन्दुस्थान जाने का तय किया, पंजाब मैं मौसी के पास रहेंगे ये तय हुआ लाहौर से पंजाब सिर्फ100km था लेकिन आने वाली मुश्किले ज्यादा होगी ये पता था ।दिलो मै यादे थी ,आखो मैं आंसू और दिमाग मैं न जाने कितने सवालो को लेकर चलते रहे आगे जाके रस्ते पै पंजाब जाने वालों की भीड़ देखकर तो मुझे लगा ऐसी आझादी नहीं मांगी थी हमने, लाखो की संख्या मैं हम चल रहे थे तभी रात के अँधेरे मैं एक गुट ने हमारे पर हमला कर दिया सब तीतर बितर हो गए मै गुड़िया (मेरी छोटी बहिन) को लेकर सामान के बक्से मैं छुप गया थोड़ी देर बाद जब आवाजे आने बंद हुई तो मैने बाहर आकर देखा मनो रक्त की नदी बह रही हो मैं बापू और माँ को ढूंढ रहा था हर गिरा हुआ शव पलट कर देखा , हर किसी को पूछ के देखा लेकिन कुछ नहीं मिला फिर एक चाचा बोले शायद आगे निकल गए हो तुम चलते रहो , मन मैं उम्मीद लेके मैं मेरी बेहन को लेकर चलने लगा रास्ते से चलते समय ना जाने कितने लोगो ने अपनी जान गवाई जैसे तैसे पंजाब के हिन्दुस्थान के सैनिकों के कैम्प मैं पहुच गया मेरे बापू और माँ की खूब तहकीकात की हर किसी आने वाले को पूछा लेकिन निराशा की सवाई कुछ हाथ नहीं अब बस मासी कब आये उसकी राह देख रहा था सवालो को समंदर जैसे मेरे मन को डूबा लेता इस देश के राष्ट्रपिता ने कैसे अपने 21 लाख लोगो को मरने के हवाले छोड़ दिया क्यू किसी ने उस 21 लाखो की हत्या की जिम्मेदारी नहीं ली जिस आझादी के आंदोलन मैं सबसे पहले खड़ा रहता था कभी सोचा नहीं था उसका अंजाम ऐसा होगा , जिस जगह मेरा जन्म हुआ , मेरे पुरखो की जमीन , मेरे बापू ,मेरी माँ सब सब मेरे से छिन लिया गया था । कुछ मेरे पास था तो सिर्फ यादे उससे ज्यादा कुछ नहीं था। मोसी का नाम सेनिको ने पुकारा तब हमने चैन की सास ली ।
सबको लग रहा होगा ये नफरत अभी ख़तम हो जायेगी लेकिन ये उसका आगाज़ था आने वाली कई दशकों तक ये नफरते बढ़ती ही रहेंगी ये तय था । बस देखना ये था कि उसकी सीमा कितनी होगी




© All Rights Reserved