...

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आज भी
याद हैं, मेरी माँ के जन्मदिन पर उनके लिए तोहफा खरीदने गए थे हम साथ। घँटों, आधा दर्जन दुकान ढूंढने के बाद मुझे कुछ मिला।
कुछ खरीदने की ख़ुशी इसलिए दोगुनी हो जाती थी, की तुम साथ हो। मेरा कभी तुमसे मन भरा ही नहीं, मैं आज तक नहीं समझ पायीं ऐसा क्यों हैं।
तुम्हारा से मिलना ठीक वैसा जैसे एक बच्चें का अपनी माँ को चाहना।
समान का कीमत का हिसाब क़िताब मैंने उस दुकानदार से पहले कर लिया था। वो कागज़ पर जोड़ता उससे पहले फट मेरे मुँह से फूट पड़ा 1250 रूपए हुए है और वो देखकर तुमसे बोला, साहब सही लड़की चुनी है आपने, समझदार है और पढ़ी लिखी भी।
मैं हँसने लगीं, मेरे लिए छोटी सी बात थी पर उसका ये कहना मुझे ख़ुश कर गया था।
"मैं तुम्हारे लिये।"
तुमने तपाक से बोला हाँ , हैं ना अच्छी बहुत मुश्किल से मिली हैं। और हम साथ हँसने लगें।
उन दिनों इरफान खान औऱ सबा कमर की नई फ़िल्म आयी थी हिंदी मीडियम, हम दोनों ने साथ देखी थी और तब से में उस पिक्चर की हीरोइन में खुद को देखती थी औऱ हीरो में तुमको। अल्हड़, मुँहफट, थोड़े देहाती, मिट्टी से जुड़े हुए और में कम खूबरसूरत सही पर मोर्डन। मैं अक्सर सोचती थी औऱ ख़ुश होती थी कुछ सालों बाद हम ठीक ऐसे होंगे। हमारे बच्चे , उनकी पढ़ाई, तुम मैं साथ। हमारी खूबसूरत ज़िन्दगी।
शायद कोई खूबसूरत सपना था जो सपना रह गया। पर कुछ सपने याद रह जाते हैं और हर बार याद आने पर थोड़ी आंखों की नमी और जान मांगते हैं। और मैं दे देती हूँ हमेशा बिना कुछ सोचे समझे।
सोचूँ भी तो क्या वो तो सब ही बंद कर दिया जब तुमसे मिलना शुरू किया था।
© maniemo