आकर्षण
भाग 2
"चाहने की तो कोई खास वजह नहीं थी
बस मन ही थोड़ा मचल गया था..."
नारी मन बहुत कोमल होता है
वो कभी कभी भावनाओ मे बह जाता है
वो भी इंसान है, गलतियां उससे भी हो सकती है...
चारुलता,
चंचल, चपल, सुन्दर,
दुनिया भर की बाते करने वाली
आंखे, सुन्दर हिरणी सी
एक दिन कॉलेज से घर आई, घर आते ही बुआजी ने मुँह मे लड्डू ठूस दिया.....
क़िस बात के लिए मुँह मिठा किया जा रहा है, बुआ ज़ी,
अरे पगली, "तेरी मंगनी तय हो गई"
इतवार को आ रहे है, वो लोग शगुन लेकर..
तेरे तो भाग खुल गए, बिटिया !
लड़का, बड़ा अफसर है, सरकारी विभाग मे
जाने बुआ ज़ी कितने ही गुण गान करने लगी
घर मे सभी खुश थे,
कई कई बलाईया ली जा रही थी
चारु की,
चारु को तो समझ नहीं आ रहा था...
वो खुश होये की, दुखी...उसे पढ़ना था आगे
अभी तो बस उसने 12 ही पास किया था...
उसने कितने सपने संजो रखे थे
पर घर वालों के आगे उसने कुछ नहीं कहा
लड़का, अफसर था सरकारी विभाग मे
चारु से पुरे 10 साल बड़ा...
इस बात पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया
चारु...ने भी विरोध नहीं किया
चारु की शादी हो गई
चारु ने खुद को,
नयी जिंदगी मे ढालना शुरु किया
नौकर, चाकर, सभी थे उसके यहाँ
पुरे ऐशो, आराम की जिंदगी थी उसकी...
पर,चारु का मन... खाली था...
किताबों से विशेष लगाव था उसे
कविताओं, को, पढ़ना, समझना, उस पर चर्चा करना... उसे अच्छा लगता था...
पर चर्चा करें भी तो किससे..?
उसने कोई संगीत शिक्षा तो नहीं ली थी
पर, गाना बेहद सुन्दर गुनगुनाती थी
पर सुनाये किसे..
उसके पति अपने कामों मे उलझें रहते थे
और, खुद मे....चारु
उसके पति की बस,
नाश्ते के टेबल पर चारु से
बमुश्किल बात हुआ करती थी....
ऐसा लगता, जैसे दोनों नदी के दो छोर हो
जिन्हे, साथ चलना तो है
पर मिलने की कोई उम्मीद ना हो...
ये बात चारु को अंतर्मन को बेहद कचोटती थी... बहुत बात करने वाली चारु बेहद अकेली हो गई थी..
...
"चाहने की तो कोई खास वजह नहीं थी
बस मन ही थोड़ा मचल गया था..."
नारी मन बहुत कोमल होता है
वो कभी कभी भावनाओ मे बह जाता है
वो भी इंसान है, गलतियां उससे भी हो सकती है...
चारुलता,
चंचल, चपल, सुन्दर,
दुनिया भर की बाते करने वाली
आंखे, सुन्दर हिरणी सी
एक दिन कॉलेज से घर आई, घर आते ही बुआजी ने मुँह मे लड्डू ठूस दिया.....
क़िस बात के लिए मुँह मिठा किया जा रहा है, बुआ ज़ी,
अरे पगली, "तेरी मंगनी तय हो गई"
इतवार को आ रहे है, वो लोग शगुन लेकर..
तेरे तो भाग खुल गए, बिटिया !
लड़का, बड़ा अफसर है, सरकारी विभाग मे
जाने बुआ ज़ी कितने ही गुण गान करने लगी
घर मे सभी खुश थे,
कई कई बलाईया ली जा रही थी
चारु की,
चारु को तो समझ नहीं आ रहा था...
वो खुश होये की, दुखी...उसे पढ़ना था आगे
अभी तो बस उसने 12 ही पास किया था...
उसने कितने सपने संजो रखे थे
पर घर वालों के आगे उसने कुछ नहीं कहा
लड़का, अफसर था सरकारी विभाग मे
चारु से पुरे 10 साल बड़ा...
इस बात पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया
चारु...ने भी विरोध नहीं किया
चारु की शादी हो गई
चारु ने खुद को,
नयी जिंदगी मे ढालना शुरु किया
नौकर, चाकर, सभी थे उसके यहाँ
पुरे ऐशो, आराम की जिंदगी थी उसकी...
पर,चारु का मन... खाली था...
किताबों से विशेष लगाव था उसे
कविताओं, को, पढ़ना, समझना, उस पर चर्चा करना... उसे अच्छा लगता था...
पर चर्चा करें भी तो किससे..?
उसने कोई संगीत शिक्षा तो नहीं ली थी
पर, गाना बेहद सुन्दर गुनगुनाती थी
पर सुनाये किसे..
उसके पति अपने कामों मे उलझें रहते थे
और, खुद मे....चारु
उसके पति की बस,
नाश्ते के टेबल पर चारु से
बमुश्किल बात हुआ करती थी....
ऐसा लगता, जैसे दोनों नदी के दो छोर हो
जिन्हे, साथ चलना तो है
पर मिलने की कोई उम्मीद ना हो...
ये बात चारु को अंतर्मन को बेहद कचोटती थी... बहुत बात करने वाली चारु बेहद अकेली हो गई थी..
...