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चिंता चिता के समान होती है
नमश्कार मित्रो मैं आज शशि त्रिपाठी आप सभी के समीप अपने विचारों के भावों को प्रकट करना चाहती हु दोस्तो जीवन मे अनेक उतार चढ़ावो के साथ हम जन्म लेते है और उन्ही उतार चढ़ावो के साथ अंतिम समय के लिए प्रस्थान लेते है हमे अपने जीवन में कई रंग देखेने को मिलते है कई व्यक्तिविशेष के आचरण का पता चलता है । हम अपने जीवन मे घटित उन घटनाओं के बारे में याद रखते है जो अनंतकाल तक हमारे जीवन मे चलने वाली है कई घटनाएं जीवन मे रस घोलने का काम करती है जोकि जीवन मे कभी नही भूल सकते अच्छी छवि छोड़कर जाती है , कुछ घटनाएं ऐसी भी होती है जो बुरे वक्त की तरह चलती रहती है और ऐसे घटनाक्रम को हम याद भी नही करना चाहते , किसी एक घटनाक्रम को बार बार नकारात्मक तरीके से सोचना , इसी से हम चिंतन की परिभाषा को और भी निखार के लाते है , हम चिंता को सकारात्मक तरीके से भी चिंतन कर सकते है । चिता तो मेरे हुए मनुष्य को जला देती है परंतु चिंता एक जीवित मनुष्य को जला देती है ।
चिंता किज्यो जीवन खोहियों , प्रेम पूजियो जीवन पाइयो !!
चिंता एक संज्ञानात्मक, शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहारिक विशेषतावाले घटकों की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दशा प्रस्तुत होती है यह घटक एक अप्रिय भाव बनाने के लिए जुड़ते हैं जो की आम तौर पर बेचैनी, आशंका, डर और क्लेश से सम्बंधित हैं ।
प्रिय मित्रों आप सभी से अनुरोध करती हूं चिंता चिता के समान होती है अंततः जीवन का सुख सकारात्मक चिंतन करने में है ना की नकारात्मक चिंतन करने में ।